I made this blog to post my thoughts, beliefs, Poems, Articles and other write ups. Moreover, I Invite people here to share their frank opinion for me and help me to make myself better and better everyday. I hope when I shall be on my death bed this blog can surely help to recapture my whole life in single script. I will be very thankful to all the people whom I met and I wish everybody should loves me a lot. I dedicate this blog to everyone who cares for me. Thanks...!
ABOUT CA. AMT SHAH
- CA Amit Shah
- Vyara, Gujarat, India
- Hi Everyone...! Thanks to visit here. I am CA by profession and doing my Practice at Vyara, South GUjarat since 2013. I was born in Mehsana. I did my Schooling from Vyara and then moved to Ahmedabad for my further studies. There i completed my B.Com., CA and CS. Currently I am doing full time practice as a Chartered Accountants in the Firm Name "AMIT T SHAH & CO.". Thanks and Welcome Back...!
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Wednesday, September 29, 2010
हम भी किसी को “बेशुमार” प्यार करते है…
देखने को उनकी बस एक झलक हम तरसते रहते है…!
उनकी हर एक अदाओं पे हम मरते है,
लेकिन कमबख्त हम प्यार का ईज़हार करने से डरते है…!
उनकी याद में हम आँखों से कुछ नगमें रोज़ बहाँ लेते है,
तोड़ने को तो दुनियाँ की हर “रस्मों” को हम तैयार रहते है…!
क्या झेल पाएंगा तू, उनसे बिछड़ने का “गम”…?
बस यही “सवाल” हम अपने आप से रोज़ किया करते है…!
कुछ देर के लिए जीते है, कुछ देर के लिए मरते है,
हम भी किसी को “बेशुमार” प्यार करते है…!
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…
निकले थे हम इस दुनियाँ वालों को बदलने,
लेकिन दुनियाँ को बदलते बदलते,
हम खुद ही पुरे बदल गए यारों…!
एक चाह थी इस दुनियाँ से हर गम को मिटानें की,
लेकिन खुद ही “अमृत” समझ कर हर गम,
अपनी ज़िन्दगी के पी गए यारों…!
सोचा था सब को साथ ले कर आगे बढ़ेंगे,
लेकिन “मंजिल” तक पहूँचने से पहले ही,
बिच राह में रास्ता भटक गए यारों…!
ख्वाहिश यही थी, की अपना बना कर,
हर किसीको अपने दिल में रखेंगे,
लेकिन हम खुद ही “सपना” बन कर,
किसी की नींदों में खो गए यारों…!
सोचा था इस पूरी “ज़िन्दगी” को हँसते हुए बिताएंगे,
लेकिन आज कुछ बेचारे “बेगुनाहों” की,
आँखों में आंसू देख रो गए यारों…!
आज इस दुनियाँ में डर का मोहोल
कुछ इस कदर फ़ैल गया है,
कि हर “इंसान” चैन से सोना तक भूल गया है,
बावजूद इसके, हम तो कब के
चैन कि नींद सो गए यारों…!
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
29th September 2010
Monday, September 27, 2010
“वक़्त”
जहाँ “वक़्त” की कमी कुछ इस तरह खलती है….!
“ख्वाहिशें” तो बहुत कुछ है मुझमे,
लेकिन कुछ पाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
पास मेरे सब कुछ है,
लेकिन कुछ खोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
नींद तो बहुत है इन आँखों में,
लेकिन चैन से सोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
प्यास तो बहुत लगी है हमको,
लेकिन पानी तक पिने के लिए “वक़्त” नहीं…!
दर्द तो बहुत होता है हमको,
लेकिन महसूस कर “चींखने” के लिए “वक़्त” नहीं…!
हर पल खुश रहते है हम,
लेकिन खुल कर हँसने के लिए “वक़्त” नहीं…!
गुस्सा तो बहुत होते है हम,
लेकिन किसी से झगड़ने के लिए “वक़्त” नहीं…!
आँखे है आंसुओं से भरी हुई,
लेकिन रोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
जीना तो बहुत चाहते है हम,
लेकिन साँसे लेने के लिए “वक़्त” नहीं…!
अपनों से बहुत प्यार करते है हम,
लेकिन उस प्यार को जताने के लिए “वक़्त” नहीं…!
दिन में “पाँच” घंटे रहते है, “परिवार” के साथ,
लेकिन “पाँच” मिनट भी बातें करने का “वक़्त” नहीं…!
चोट तो बहुत गहरी लगी हुई है हमको,
लेकिन चोट से उभरने के लिए “वक़्त” नहीं…!
विद्वान् बनना चाहते है हम,
लेकिन पढाई करने के लिए “वक़्त” नहीं…!
निकले तो थे इस दुनिया को बदलने,
लेकिन खुद को बदलने के लिए “वक़्त” नहीं…!
हर रोज़ “मंदीर” में जाते है हम,
लेकिन भगवान के आगे सर झुकाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
देते है हम “सहारा” सब को,
लेकिन खुद को संभालने के लिए “वक़्त” नहीं…!
कहना तो बहुत कुछ चाहते है हम,
लेकिन “ज़ुबान” खोलने के लिए “वक़्त” नहीं…!
लिखना भी बहुत चाहते है हम,
लेकिन “कलम” तक उठाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
आज “वक़्त” की मुझे सबसे ज्यादा “झरूरत” है,
लेकिन “कम्बख्त”, “वक़्त” को हमारी खातिर रुकने के लिए “वक़्त” नहीं…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
27th September 2010
Sunday, September 26, 2010
You are “MY Dear”…
Even though,
You are not so “Near”
Don’t feel “Fear”…
Even though,
You get a little bit “Tear”
You will get your
Destiny very “Near”…
Just give yourself
One mone “Geear”
If you still in a “Fear”…
Then just remind me,
I will be ready to “Cheear”,
Because after-all…
You are “My Dear”…
- Amit Shah (M.A.S)
12th June, 2008.
मत पडो इस इश्क की उलज़न् मै…
किसीसे इश्क करने के लिए इस दिल को समज़ाना पड़ता है…!
इश्क का सागर बहूत गेहरा है…
गलीयाँ अजीब और रास्ता बहूत कठिन है…!
मै तो कहता हूँ की…
मत पडो इस इश्क की उलज़न् मै..क्योंकी…
इसे सुलज़ाने के लिए खुद को उलज़ाना पड़ता है…!
अगर ना सुलज़ा पाए इसे तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकता,
आखीर मै दिलवालों को भी अपना दिल खोना पड़ता है…!
-Amit Shah (M.A.S.)
जिन्दगी की किताब…
आज हम अपनी ज़िन्दगी की किताब खोलते है…
” दिल में दर्द था हमारे..,
जिन्हें हम हँस कर भुला देते थे…
आज उस दर्द को हम बयाँ करते है…;
नफ़रत करते थे बरसों पहले हम जिन्हें…
आज उनसे मोहब्बत करते है…;
शम्मा में परवाने जलते है उसी तरह…
आज हम इस कलियुग में जलते है…,
फर्क बस इतना है कि…
परवाने शम्मा में जल कर..
उजाला फैलाते है, और…
इस कलियुग में लोग हमें उजाले में जलाते है…;
मगर आज…जल कर भी हम जिंदा है…
तो बस इसीलिए…,
हर बार आप जैसे दोस्त ही हमें..
सहारा देते है…; ”
-Amit Shah (M.A.S)
Friday, September 24, 2010
पत्थर बन गया है दिल आज…
रोने की कोई आस नहीं; (१)
जल रहे है हम आज…
फिरभी हालात हमारे बेबस नहीं;(२)
बरसने दो आसमान से पानी आज…
पिने की कोई प्यास नहीं;(३)
बदल गयी है दुनिया और…
बदल गए है दुनिया वाले आज…
परायों की तो बात ही क्या करे…
आज तो अपना भी कोई पास नहीं;(४)
साँसे चल रही है आज भी…
पर हर-पल मौत का पैगाम सुनाती है,
जी रहे है हम आज…
पर वजह कुछ ख़ास नहीं;(५)
बदल गया है तू भी कितना…
आईने में अपनी सूरत तो देख,
आँखों में नमी है और होठों पे हँसी है आज…
पर खुद पे ज़रासा भी “विश्वास” नहीं;(६)
-Amit Shah (M.A.S.)
7th March, 2009
“अदालत” में हर रोज़ यह मंझर होता है…
“सुनवाई” को “देखने” हर “इंसान”
बची “इंसानियत” को साथ ले घर से आता है
और यहाँ वह सारी बेच घर वापिस जाता है …!
“अदालत” में खड़ा हर “इंसान”
“सच” की ओर “देखता” है, लेकिन
“झूठ” को ही “सुनता” है…!
वैसे तो दुनिया का दस्तूर है,
“जो दिखता है, वही बिकता है…!”
पर “न्यायतंत्र” की तो बात ही कुछ उलटी है…
यहाँ पर जो “सुनता” (Judges & Lawyers) है, वो ही “बिकता” है…!
और फिर “काठहरे” में खड़ा हुआ “लाचार” “सच”,
देख कर झूठ की आँखों में
सब के सामने “रोता” है… और
फिर “इन्साफ की दैवी” की ओर देखता है
और धीरे से हंस देता है…!
आखिर में,
वह सब “भेडियें” जो “इंसान” के रूप में बैठे थे “अदालत” में,
देख कर यह “गुनगुनाता है,
ऐसा तो हररोज़ यहाँ पे होता है, फिर
देख कर “तमाशा” चला जाता है…! और
दुसरे दिन वापस चला आता है…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
24th September 2010
Thursday, September 23, 2010
आज ये दुनिया जल रही है,…
चिंगारी उठी थी नफरत की सालों पहले
वो अब कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है…;
आज यहाँ इन्सान नहीं पर
इंसानियत ही मर रही है…;
न जाने क्यों आज ये दुनिया जल रही है…!
परायों के लिए लोगों के दिल में आज
दुश्मनी कुछ इस कदर बढ़ रही है…;
और अपनों के बीच में
अनदेखी सी कोई दीवारें बन रही है…;
न जाने क्यों आज ये दुनिया जल रही है…!
आज भी यह दुनिया जन्नत से कोई कम नहीं है,
लेकिन जन्नत जैसी इस दुनियाँ में
इन्सान नामक भेडियें भी कुछ कम नहीं है…;
क्या इसीलिए आज ये दुनिया जल रही है…!
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
मै सपनो के सहारे चल रहा हु,
हर पल धूप में पल रहा हु…;
मै बिना आग के जल रहा हु,
मन ही मन में तड़प रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
मेरी आखें जैसे सहम गयी है,
आंसुओ की नदी मै बहा रहा हु…;
मेरी साँसे जैसे रुक गयी है,
मै चीख-चीख कर कुछ कह रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
न कोई मेरा यहाँ पे अपना है,
न कोई मेरा यहाँ पे पराया है…;
फिरभी मन में आस लिए,
मै न जाने किसको ढूँढ रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
खुले गगन तले मै जी रहा हु,
वीरान सड़कों पे मै सो रहा हु…;
हर पल लहरों के साथ मै ज़ूम रहा हु,
बिच सागर में जैसे मै खेल रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
कोई मुजे शायद देखता नहीं,
पर मै सबको देखता हु…;
कोई मुजे शायद पहचानता नहीं,
पर मै सबको पहचानता हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
हर दिन – हर पल नए दुख मै ज़ेलता हु,
खुशियों को तो बस मै दूर से ही देखता हु…;
मै इन्सान हु फिरभी इंसानों से डरता हु,
कभी – कभी अपने आप से ही मै लड़ता हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
-अमित शाह (M.A.S.)
“हम भी है प्यार मै…”
दूर से देखता हू तो लगता है…
जैसे सोने के तार है; (१)
आँखों में जैसे उसकी बिजली चमकती है,
चलती है तो जैसे कोई अप्सरा लगती है; (२)
कितनी मीठी है बाते उसकी,
सुना था कल… लेकिन,
लगता है जैसे आज ही सुनी है; (३)
जब भी उसे सोचता था,
तो नींद से उठ जाता था;
जब उसे देखा तो पता चला,
की.. कभी सोया ही नहीं था; (४)
उसकी एक ज़लक देखने के लिए मै कितना बेताब था,
उसे देखा तब पता चला,
शायद… उसके लिए ही मै जीता था; (५)
उसे पाना ही मेरा सपना है,
उसे पा कर ही ज़िन्दगी जीने मै मज़ा है; (६)
दुःख कभी मिले ना उसे, बलकी…
मेरा सुख भी मिल जाए उसे;
जीवन मै रब से यही तो एक दुआ है,
की.. वो जो चाहे, मिल जाए उसे; (७)
यह सुन कर तुम्हे भी लगेगा………..
“तन्हाई है प्यार मै, जुदाई है प्यार मै,
ख़ुशी है प्यार मै, ग़म है प्यार मै,
जीत है प्यार मै, हार है प्यार मै,
हमे सब कुछ पता है….
लेकिन क्या करे, हम भी है प्यार मै”
- अमित शाह (M.A.S.)
28th October, 2006.
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
कितने हसीन थे बचपन के वह दिन,
न कोई हमसे बड़ा था – न कोई हम से हीन…!
जब भी याद करते है बचपन के उन् दिनों को,
तो कुछ पलों के लिए वक़्त जैसे थम सा जाता है…!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
बचपन की यादें जीवन की अनमोल यादें होती है,
हर पल कुछ नया जानने की एक तलबसी होती है,
किसीने हमसे कहा था की – “बचपन बड़ा सुहावना होता है”
आज हमें वह इंसान याद आता है….!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
मिट्टियों के ढेर में बिताया हुआ हर वो पल याद आता है…
बार बार गिरा कर बनाया हुआ पत्तों का वह “महल” याद आता है…
आज जब भी देखते है किसी बच्चे को खेलते हुए…
तो हमें बचपन में खोया हुआ हमारा वह “खिलौना” याद आता है…!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
“मम्मी” की गोद में बिताया हुआ हर एक पल याद आता है…
“पापा” की उंगली पकड़ कर के चलना सिखा था हमने,
आज हमें वो “वक़्त” याद आता है…!
सोचता हूँ की – लौट कर चला जाऊ “बचपन” के उन् दिनों में…
क्योंकि….”आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!”
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
22nd September 2010
मतलबी इस दुनियाँ में, आज हर “आँख” है “रोती”…!
आज हर “आँख” है “रोती”…!
दूसरों के “जज़्बातों” से खेलने वाले यहाँपे,
हर एक की “नियत” है “खोटी”…!
राजनीती के कठहरे में खड़े,
हर नेता की “बातें” है “मोटी”…!
अगर नसीहत दे कुछ बदलाव की,
तो बोलते है,
“बेटा…! अभी आप की उम्र है “छोटी”…!
सिक्को की दो बाज़ुए भी यहाँ
अब तो पहचाननी है मुश्किल,
जहाँ एक बाज़ु है सच्ची
तो दूसरी बाज़ु है “खोटी”…!
सरकारी आंकड़ो के हिसाब से
गरीबों की “लिस्ट” है “मोटी”,
यह आंकड़े किस काम के,
जब तक एक भी गरीब को न मिल सके “रोटी”…!
नहीं बदलेंगा यह “देश” तब तक,
जब तक “जनता” ही रहेंगी “सोती”….!
मतलबी इस दुनियाँ में,
आज हर “आँख” है “रोती”…!
एक “गूंज” ऐसी उठी…
कि हमारा दिमाग उस गूंज को सुन गूंज उठा…;
अभी तो सोच ही रहा था मै,
कि वह क्या था..? और कौन था..?
जो हमसे है इतना रूठा…;
उतने में कहींसे एक आवाज़ सी आई,
और सोते हुए भी मेरा मन
सपनों में जाग उठा…;
धिन्ढूरकर हमारे मन को,
मेरा “ज़मीर” हमसे कह उठा…;
उठ जा ‘अमित’ जल्ली से,
एक बड़ी सी “आंधी” आ रही है,
और साथ में अपने
‘महँगाई’, ‘भ्रस्टाचार’, और ‘गरीबी’ ला रही है…;
अचानक हमारे दिलों-दिमाग में
एक अजब तूफ़ान सा उठा…;
चारो ओर एक गहरा “सन्नाटा” सा बिखरा हुआ था,
जब सुन कर मेरे “ज़मीर” को
“झपट” कर अपने बिस्तर से मै जाग उठा…;
अब नहीं जीना है हमको,
मतलबी इस दुनिया में…
“भयावह” यह “सपना” देख कर,
मनोमन अपने “ज़मीर” से मै कह उठा…;
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
23rd September 2010
Tuesday, September 21, 2010
जग भला – भगवान भला…
भगवान से भला यहाँ कौन भला…!
“इंसान” तो है एक खेलता खिलौना…
“चाभी” है जिसकी भगवान के यहाँ…!
कैसे जाओंगे तुम भगवान के पास…
भगवान तो है सूरज के पास…!
पहूँचना हो अगर तुम्हे भगवान के पास…
तो जाना होगा तुम्हे इस “संसार” से भाग…!
लेकिन कैसे जाओंगे तुम इस “संसार” से भाग…
जबकि, “चाभी” ही नहीं है आप की आप के पास…!
इसीलिए हम कहते है,
“इंसान” बन कर रहो ‘इंसानों’ के साथ…
जब वो चाहेंगा तब बुला लेंगा आप को अपने पास…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
20th September 2010.
चलो मिल कर लेते हे एक “शपथ” आज…
अपनाए “महात्मा गांधीजीके” सिंद्धांतो को आज…
“अहिन्सा” से भर से पूरी दुनिया को आज…
कल हुई गलतियों को सुधारे आज…
बदल दे “राजनीति” के हर एक पहलू को आज…
छोड़ दे देश के लिए जीने की “शर्म” को आज…
याद करे उन “शहीदों” के “शहादत” को आज…
मिलाले कन्धों से कंधे और कदमो से कदम आज…
दिखा दे दुनिया को “एकता” की ताकत आज…
दे दे दुश्मनों को मूंह तोड़ जवाब आज…
उखाड़ फैके “आतंकवाद” को जड़ मुड से आज…
चलो मिल कर लेते हे एक “शपथ” आज…
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
20th September 2010.
अंदाज़े शायराने..
Enjoy..! :-)
“गुज़रा हुआ “वक़्त” कभी वापस आता नहीं,
आने वाला “वक़्त” कभी रुकता नहीं;
यह तो “वक़्त” – “वक़्त” की बातें है, मेरे दोस्त…!
आगे बढ़ने वाला बन्दा “वक़्त” के आगे कभी झुकता नहीं…!” (१)
“नयी “मंज़िलों” को पाने के लिए “मंजिलें” बनानी थी हमें,
“मंज़िलों को साथ ले कर “मंजिलें” पानी थी हमें;
खुश नसीब थे हम…
कि “मंज़िलों” को पाते पाते वोह राह मिल गयी हमें,
जिस पर चलते चलते, “मंजिल” तक पहुँचने से पहले ही
“मंजिल” मिल गयी हमें….!” (२)
“दुनियाँ में “दोस्त” से बढ़कर जो कोई चीज़ है,
तो वह है “दोस्ती”…!
“दुनियाँ” में “गम” से बदतर जो कोई चीज़ है,
तो वह है “गुस्ताखी”…!
क्योंकी….
“दोस्त” तो हर कोई बनता है, मगर
“दोस्ती” हर कोई नहीं निभाता…!
“गुस्ताखी” तो सब से होती है, मगर
“गम” हर किसीको नहीं मिलता…! (३)
“डरता” तो हर कोई है,
मगर फर्क बस इतना है…
“डरने” वाला बन्दा अपने “डर” कि वजह से
“डर” के सामने लड़ने से “डरता” है…!
और बेख़ौफ़ बन्दा अपने हौंसले कि बदौलत
“डर” के सामने “डरने” से “डरता” है…! (४)
-Amit T. Shah (M.A.S.)
21st September 2010
Saturday, September 18, 2010
ये बात जान ले तू…
जब तक ईश्वर सीड़ियाँ रखता जायेंगा…!
मगर जिस दिन ईश्वर सीडी रखना भूल गया…
उस दिन चाहे कुछ भी करले…
बेशक़ तू गिर ही जायेंगा…!
कंधों से कंधें और कदमों से कदम मिलाके,
चलना सीख ले सभी के साथ तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
की बेहाल हो जायेंगा तू, और तेरा होंसला टूट जायेंगा…!
‘नफ़रत’ को अपने दिल से,
और ‘कायरता’ को अपने दिमाग से निकाल फैंक तू…
वरना इस नफरतों के बहाव में तू ऐसा बह जायेंगा…
की आँसूओं के सागर तले तू डूब जायेंगा…!
अभी से संभालना शुरू कर दे अपनें ‘जझ्बाँतों’ को तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
जब कहीं दूर – अकेला, अंजान रास्तों पे तू भटक जायेंगा…!
दुनियाँ के ‘दस्तूरों’ को जितना हो सके उतना जल्दी समझ ले तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
जब अपने ही किये पर तू पछतायेंगा…;
लेकिन तब तक तो बहुत देर हो गयी होंगी…
जब तुझे यह समझ आयेंगा…!
इसीलिए हम कहते है…ईश्वर से उलझना छोड़ दे तू…
क्योंकी…जिस दिन ईश्वर सीडी रखना भूल गया…
उस दिन चाहे कुछ भी करले…
बेशक़ तू गिर ही जायेंगा…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
17th September 2010
अनमोल रत्नों को एक “सलामी”…
सबसे पहले तो इस ‘देश’ के सभी ‘सिपाही’ को मेरा “सलाम”…!
और देश के लिए ‘शहादत’ को गले लगाने वाले,
हर एक ‘शहीद’ को मेरा “सलाम”…!
‘डॉ. ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम’ साहब की तो बात ही कुछ निराली है…
हमारे देश के वे ‘Missile Man’ कहलाते है…!
‘Missile’ से भी तेज़ उनका दिमाग है…
विनम्रता से भरा उनका व्यक्तित्व है…
कलाम साहब, आप को मेरा लाख लाख “सलाम”…!
बात करे अगर खेल की तो…
‘Cricket’ में ‘सचिन तेंदुलकर’ को मेरा “सलाम”…!
‘Chess’ में ‘विश्वनाथन आनंद’ को मेरा “सलाम”…!
‘Shooting’ में ‘अभिनव बिंद्रा’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘Badminton’ में ‘साइना नेहवाल’ को मेरा “सलाम”…!
‘रफ़ी दा’…’किशोर दा’…और ‘मुकेशजी’ के हर वो,
यादगार ‘अंदाज़’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘ऐ. आर. रहमान’ के ‘शाश्वत’ संगीत को मेरा “सलाम”…!
सब की प्रिय ‘लताजी’ के ‘कंठ’ के हर एक ‘सुर्रों’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘अमिताभ बच्चनजी’ के ‘शाहेंशाहीं’ अभिनय को मेरा “सलाम”…!
‘अंतरिक्ष’ में जाने वालीं प्रथम भारतीय महिला,
‘कल्पना चावला’ को मेरा “सलाम”…!
और उन्हीके नक़्शे कदमों पर चलने वालीं,
और दूसरी बार ‘अंतरिक्ष’ में जाने के लिए तैयार,
‘सुनीता विलियम्स’ को भी मेरा “सलाम”…!
आखिर में देश के हर एक ‘देश वासिओं’ को मेरा “सलाम”
आज ठान ही ली है, “सलामी” देने की,
तो हम कैसे भूल सकते है ‘p4poetry’ के हमारे प्यारे ‘कविओं’ को…
‘p4poetry’ के सभी ‘कविओं’ एवं ‘दोस्तों’ को मेरा “सलाम”…!
सबसे ज्यादा कविताएँ लिखने वालें,
‘विश्व नंदजी’ (Sirjee) को मेरा “सलाम”…!
और हर पल सब का होंसला बढ़ाने वालें,
‘रेनू राखेजाजी’ को मेरा “सलाम”…!
एक से बढ़ कर एक पंक्तियाँ रचने वालें,
‘सिद्ध नाथ सिंह’ को मेरा “सलाम”…!
और जिनके बेहतरीन ‘शायराना’ अंदाज़ है,
वे ‘हरीश चन्द्रजी’ को भी मेरा “सलाम”…!
“आप हमारा सलाम स्वीकार करे…”
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
18th September 2010
Friday, September 17, 2010
बारिश आई… बारिश आई…
सबको भिगोंने बारिश आई…!
सुबह को आई, रात को आई…
कल आई थी और आज भी आई…!
बिना रंगों के पानी से ही…
होली जैसा मोहोल बनाने…! बारिश आई…(१)
सात रंगों को संग मिलाने…
आसमान में बिजली चमकाने…
बूंदों को एक साथ गिराने…
नये – नये करतब दिखाने…! बारिश आई…(२)
प्यासे की हर प्यास बुज़ाने…
धरती पर हरियाली लाने…
नदियों को पानी से भरने…
पहाड़ों को अंबर से छुपाने…! बारिश आई…(३)
पेड़ों की घटायें बढ़ाने…
खेतों को नयी फसलों से सजाने…
सागर को मोती से भरने…
सूरज को बादलों मे छुपाने…! बारिश आई…(४)
मन प्रेमियों प्रेम जताने…
प्यासे दिल मे आस जगाने…
नफरत की दीवार गिराने…
बूँद से हर आंसू को मिलाने…! बारिश आई…(५)
हर दिनों को त्यौहार बनाने…
कलियों मे से रंगीन फूल खिलाने…
मिट्टी की मीठी सी महेक फ़ैलाने…
मौसम को हर पल हसीन बनाने…! बारिश आई…(६)
मेंढकों की अजीब आवाज़ सुनाने…
कोयलों के सुरों से सुर मिलाने…
गरजते बादलों की बादशाहत दिखाने…
तन और मन मे ताज़गी जगाने…! बारिश आई…(७)
कभी अपने रौद्र रूप से…
इंसानों को यह एहसास दिलाने…!
तो कभी अपने सौम्य रूप से…
किसानो का साथ निभाने…! बारिश आई…(८)
बारिश आई… बारिश आई…
सबको भिगोंने बारिश आई…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
13th September 2010.
“गुज़ारिश”…
आज अपने आप से ही डर रहा हूँ…!
कल तक इस दुनिया वालोंसे झगड़ने वाला मै…
आज अपने आप से ही झगड़ रहा हूँ…!
शायद कोई तो होंगा मेरे जैसा इस पुरे जहाँ में…
आज तक उस चहेरे को मै ढून्ढ रहा हूँ…!
जिंदा रहने की कोई ख़ास वजह तो नहीं है…
पर अपनी साँसों की बदौलत मै जी रहा हूँ…!
खुशियों के आँसू बहाए हुए एक अरसा हो गया…
आज गम के आँसू मै बहा रहा हूँ…!
गम तो मिलते रहते है, ज़िंदगी के हर मोड़ पे…
लेकिन अमृत समज कर पिए जा रहा हूँ…!
पल पल गुज़रता जा रहा है हर पल…
लेकिन मै वहीं का वहीं ठेहर गया हूँ…!
मालूम है हम को, की कोई हमसफ़र नहीं मिलेगा मुजे…
फिरभी किसी के इंतज़ार में नगमे बहा रहा हूँ…!
एक छोटी सी उम्मीद लिए इस दुनिया में मै आया था…
पर खाली हाथ ही वापस लौट रहा हूँ…!
बाढ़ आई थी नफरत की बरसों पहले…
आज तक उसमे बह रहा हूँ…!
बस एक दफा इन्सान बन कर तो देखो…
एक आखरी “गुज़ारिश” मै कर रहा हूँ…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
15th September 2010
यह समां शायराना….
मगर इश्क के बारे में हम कुछ यूँ जानते थे…
“मेहबूबा को समझाने के लिए उनसे इश्क करना पड़ता है…
इश्क करने के लिए इस दिल को समझाना पड़ता है…
यह इश्क की अजीब चीज़ है मेरे यार…;
जिसमे मंजिल तो होती है…
मगर मंजिल तक पहूँचने का रास्ता ढूंढना पड़ता है…!” (१)
आओ अब सुनाता हु मै आप को मेरी पूरी कहानी…
“हाथों में लेकर गया था फूल “गुलाब” का…
देखना था आज जोर हमारे “रूआब” का…
मै तो पाने गया था उनसे “एहसास” बस कुछ पलों का…
मगर हमे तो उनसे मिल गया “प्यार” जनमों जनम का…!” (२)
फिरभी मै आप को एक नसीहत देना चाहूँगा….
प्यार करने से पहले आप को इत्तेला करना चाहूँगा…
“मत पड़ो इस इश्क की उलझन में…
क्योंकी…इसे सुलझाने के लिए…खुदको उलझाना पड़ता है…;
अगर ना सुलझा पाए इसे,
तो फिर भगवान् भी कुछ नहीं कर सकता…
आखिर में “दिलवालों” को भी अपना दिल खोना पड़ता है…!” (३)
प्यार करने को तो हमने कर लिया…
पर उनसे प्यार का हमें क्या सिला मिला…
आओ अब उनकी दास्ताँ सुनाते है…
“बंदगी के आगे ज़िंदगी बेबस है…
ज़िंदगी के आगे लोग बेबस है…
बेबसी की हद तो देखो…
उसने जिस आवाज़ से हमको पुकारा था…
आज वोह आवाज़ बेबस है…!” (४)
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
16th September 2010
सोचता हूँ अक्सर तन्हाई में…
की ज़िंदगी में ढेर सारी खुशियों को मै पाऊं…
अपनी काबिलियत के दम पर ही हर मै कमियाबी को पाऊं…
जीवन में हर दम आगे ही आगे बढ़ता जाऊं…
पंछी बन कर मै आसमान में उड़ता जाऊं…
आसमान को चीरते हुए मै आगे बढ़ता जाऊं…
तारा बन कर मै सदियों तक आसमान में चमकता रहूँ…
चाँद की रोशनी में मै गुल – मिल जाऊं…
किरने बन कर वापस धरती पर मै आऊं…
आप जैसे प्यारे से दोस्तों को मै मिलूं…
और फिर सोचुँ…
शायद…मै वापस “इंसान” बन जाऊ…!!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
17th September 2010
Tuesday, September 14, 2010
कहानी हम और आप की...
और तुरंत ही हम पर गुस्सा हो गए थे आप…!
माफ़ी मांग ली थी हमने तो आप से…
फिरभी हमसे झगड़ दिए थे आप…!
फिर कुछ पहचान निकली हम और आप की…
तो बाद में शरमा कर हँस दिए थे आप…!
हमसे माफ़ी मांगने की बजेह…
“आप यहाँ कैसे..?” यह हम से पूंछ रहे थे आप…!
चहरे पर ख़ुशी साफ़ साफ़ झलक रही थी मेरे…
क्योंकी…, बरसो बाद जो मिले थे आप…!
आप को यह पूछने से, रोक न पाए ज़बान को…
“क्या अब तक कुवांरी है आप…?”
सवाल ज़रूर अजीब था मेरा….
पर “हाँ” कहकर हँस दिए थे आप…!
सुन कर आप के जवाब को हम, कुछ देर के लिए गुमसुम हो गए थे…
क्योंकी…शायद मेरी ज़िंदगी की ज़रूरत बन गए थे आप…!
फिर शायद प्यार से, देख कर मेरी आँखों में…
हम से अपने गुनाह की, माफ़ी मांग रहे थे आप…!
मगर फिर कोई रास्ता न मिलने पर…
हमसे दोस्ती का वादा कर दिए आप…!
ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पे,
जब अस्पताल की बिस्तर में पड़े थे हम…;
हमारे पास आ कर के शायद कुछ कह रहे थे आप…!
हम ठीक से सुन तो नहीं पा रहे थे आप को…
पर यह ज़रूर देख रहे थे…
सहमी हुई आँखों से बूंद आंसूओ के गिरा रहे थे आप …!
ख्वाईश यही रहेंगी इश्वर से मेरी,
की मेरे गुजरने के बाद भी खुश रह सके आप…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
14th September 2010
Wednesday, September 8, 2010
My Recent Poem on P4Poetry.com
तो हमारी आँखों से आंसुओं की नदी बहती है…!
मगर हम जब अपनों को छोड़ कर जाते है,
हमारी आँखे ही हमेशा के लिए बंद हो जाती है…!
यह दुनिया भी अजीब है,
और यह दुनिया बनाने वाला भी अजीब है, मेरे दोस्त…!
मरता हुआ इंसान बहोत बैचेन रहता है,
पर मरने के बाद वोह बड़े चैन की नींद सोता है…!
ज़िन्दगी बहोत छोटी है, मेरे दोस्त…,
मगर कभी-कभी एक दिन भी बहोत लम्बा लगता है…!
कभी पलके वक़्त के गुज़रने का इंतज़ार करते हुए झुक जाती है,
और कभी पलके झुकते ही पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है…!
हमारी यारी दुनिया मे सबसे प्यारी है…! रोना क्या है.., भूल जा मेरे दोस्त…!
अब तो जी भर कर हंसने की बारी है…!
लोग तो प्यार में साथ-साथ जीने-मरने की बातें करते है…,
मगर हम तो अपनी दोस्ती को ही सबसे ज्यादा प्यार करते है…!
- अमित शाह (M.A.S.)
8th September 2010
Saturday, September 4, 2010
HARD DAYS OUT...but...STILL FIND A TIME...
Its been very hard days out for me since last week. There is a heavy work load I am suffering from since then. It seems to be very tiring days for me in whole September. The field I am in require all your efforts in that month. It called a September Ending in our profession.
September ending is what we call a last month to complete all the Reports and Income Tax filing for all the Ltd. & Pvt. Ltd. Companies for the financial year 2009-10. There is a heavy work load with all the people engaged in this profession. But even though I am so happy rather than Lucky, that I find some times to update my blogs.
Further, I am glad to share one good news with all my friends that I had got completed my Internship/articleship training on 25th June 2010 for which I have been in receipt of the certificate from the Institute last week. I am very thankful to my principal Mr. Milin J. jani and all the staff members out there. It has been an excellent experience to work with him and all my staff members (Past & Present). I am specially thankful to my Sie, Mr. Milin J. Jani for giving me a huge support and imparting me a wonderful experience of practical training. I hope that whatever I have learned from him will definitely help me in future for my career.
I am so happy that during my articleship training I have learned lots of thing which will help me in practical life. Along with that I was also able to concentrate on my studies and the ultimate result is that I had completed my B.Com.,Inter CA as well as Inter CS. Now only final examinations are pending for me which I am suppose to give in May 2011. And after that I will enter the real corporate world.
In future I am planning to join a big corporate group in Delhi or Mumbai wherever I will deem fit for me. But it will be only for maximum of 2-3 years and after that I shall be looking forward to start my own practice. I would like to make my career in Finance & Taxation.
I will always be ready to help all my friends in whatever ways I can. You all are invited to consult me at any time for your any queries regarding Finance, Taxation and Audit. I am looking forward to help you all and not only the person I know but those who read this blog can also contact me any time.
You all are MOST WELCOME....
Thank you...
With LOL (Lots Of Love),
Amt T. Shah (M.A.S.)
How to Live the LIFE
If you can follow this formula, you can definately get a way to live a Happy & Successive life and I am sure that you will never be feel disappointment for your LIFE forever at the stage when your life will gettig towards the old age.
Thanks for your kind support to me......
My Golden Sentences
We know that but we ignore it.."
-16th June, 2008
2. "Set your target everuday.
Try to achieve it on a next day,
Shortage in actual output is Nothing..
But... Only a Loss in Profit."
-18th June, 2008
3. "Don't loose temper in critical situation
Try to hande that situation...
Keeping your mind CooL."
-19th June, 2008
4. "Every human beings have internal Strengths in it,
But... Amongst, Somebody has external Weaknesses,
Caused them to be unable to discover it."
-20th June, 2008
5. "On every new day..
you must feel a new Energy,
to achieve a new Target."
-21st June, 2008
6. "Perfection should be the part of your
Day - to - Day life."
- 22nd June, 2008
7. "Keep running untill you get your Destiny,
And... Keep holding after getting your Destiny."
-1st July, 2008
This is about FRIENDS.
"Never try to turn your life, But always try to find turning points in your life, Friends are like turning points and so they will come in your life, So don't miss them but try your best to catch them & save them in the memory of your heart"
Have a good time with your FRIENDS!!!
"पडोसन"
सपने में बनानी चाही हमारी एक कहानी,(१)
दीवाना तो था मै उसका, मगर
धुंड रहा था मेरी कोई दीवानी,(२)
लेकिन... बहुत अफ़सोस हुआ, क्योंकी
रात बीत गई और साथ ही बीत गई हमारी जवानी,
लेकिन फिर भी न बन पाई हमारी कोई कहानी,(३)
लेकिन जल्द ही मेरी खोई ख़ुशी वापस आ गई,
क्योकी... सुबह जब आँखे खोली तो,
सामने ही मैंने 'पडोसन' को पाई" (४)
-Amit Shah (M.A.S.)