I made this blog to post my thoughts, beliefs, Poems, Articles and other write ups. Moreover, I Invite people here to share their frank opinion for me and help me to make myself better and better everyday. I hope when I shall be on my death bed this blog can surely help to recapture my whole life in single script. I will be very thankful to all the people whom I met and I wish everybody should loves me a lot. I dedicate this blog to everyone who cares for me. Thanks...!
ABOUT CA. AMT SHAH
- CA Amit Shah
- Vyara, Gujarat, India
- Hi Everyone...! Thanks to visit here. I am CA by profession and doing my Practice at Vyara, South GUjarat since 2013. I was born in Mehsana. I did my Schooling from Vyara and then moved to Ahmedabad for my further studies. There i completed my B.Com., CA and CS. Currently I am doing full time practice as a Chartered Accountants in the Firm Name "AMIT T SHAH & CO.". Thanks and Welcome Back...!
Pages
Friday, November 19, 2010
हर रोज़…एक नयी “कशमकश” है…!
शुरुआत से ले कर अंत तक, हर रोज़..
एक नयी “कशमकश” है…!
जब होना होता है शिशु का जनम,
तो “बेटा होगा – कि फिर बेटी होगी..?”
इसे ले कर “कशमकश” है…!
शिशु के जनम हो जाने के बाद,
“अब उसका क्या नाम रखे…?”
इसे ले कर “कशमकश” है…!
बड़ी कशमकश के बाद,
चलो आखिर कार उसका नाम रख दिया “मुन्ना”,
लेकिन यह “मुन्ना” बड़ा हो कर क्या करेंगा…?
अब इसे ले कर “कशमकश” है…!
आखिर कार “मुन्ना” बड़ा तो हो गया,
अब वह शादी कब करेंगा…?
और किस से करेंगा…?
अब इसे ले कर “कशमकश” है…!
बड़ी कशमकश के बाद,
चलो “मुन्ने” कि शादी भी करवा दी,
लेकिन अब “मुन्ने” के पापा को,
“वह ‘नाना’ कब बनेंगे…?”
इसे ले कर “कशमकश” है…!
‘पापाजी’ जल्द ही ‘नानाजी’ तो बन गए,
लेकिन अब एक तरफ अपने बेटे को ले कर,
तो दूसरी तरफ अपने पोते को लेकर,
“कैसे करेंगे एक साथ दोनों की परवरिश…?”
अब इसे ले कर “कशमकश” है…!
जब ‘नानाजी’ बूढ़े हो गए,
तो “क्या बेटा रखेंगा उनका ख़याल…?”
अब इसे ले कर “कशमकश” है…!
ज़िन्दगी के अंत समय पर,
न जाने अब “मृत्यु” कब आएगी…?
इसे ले कर “कशमकश” है…!
आखिर कार इस सभी “कशमकश” से,
कैसे छुटकारा पाया जाए…?
इसे ले कर “कशमकश” है…!
जीवन के हर मोड़ पर,
शुरुआत से ले कर अंत तक, हर रोज़..
एक नयी “कशमकश” है…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
19th November 2010
भगवान् दिखते क्यों नहीं है…?
“भगवान् अगर है इस दुनियां में,
तो फिर दिखते क्यों नहीं है…?”
कोई कहता है –
“भगवान् ही सब-कुछ है…!”
तो कोई कहता है –
“भगवान् नामक कोई चीज़ ही नहीं है…!
मै पूछता हूँ उन लोगों को -
“अगर भगवान् नामक कोई चीज़ ही नहीं है,
तो यह ‘ब्रह्माण्ड’ किसने बनाया है…?
इस ‘ब्रह्माण्ड’ मै यह खूबसूरत ‘दुनियाँ’ किसने बनायीं है…?
इस खूबसूरत ‘दुनियाँ’ मै यह ‘इंसान’ किसने बनाये है…?”
दोस्तों, भगवान् यक़ीनन इसी दुनिया मै है,
और वह हमारे आसपास ही रहते है…!
लेकिन वह हमें दीखते नहीं है…!
इसीलिए नहीं की भगवान् नामक कोई चीज़ ही नहीं है…!
इसीलिए…क्योंकी, भगवान् इंसानों की तरह कभी ‘बिकते’ नहीं है…!
वरना, इंसानों का तो यह “मंत्र” ही है,
“जो दिखता है, वह बिकता है…!”
शायद इसीलिए भगवान् दिखते नहीं है…!
लेकिन अफ़सोस की बात तो यह है…
आज सरे-आम भगवान् का ‘नाम’ इस दुनियाँ मै बिकता है…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
16th November 2010
Wednesday, October 27, 2010
Story Of The Glory....
I’ll tell you a story……!
This is story of a person
Who hasn't any glory……!
He was a person who was very shy…
But… he desired to fly; High in the sky……!
He followed the slogan, “I’ve no time to talk…!”
As he had to go for a long – long walk……!
Once upon a time, he got married…
But…afterward, he became worried……!
He became worried, after having a wife…,
As he thought that it was just the beginning of his Life……!
Then time started. To run for money…
From then onwards, he had no time for his honey……!
After a few years, he got a baby…,
And very soon, he started to call him daddy……!
Then every day, for him, were going very fast…
The stage of life had come, which was the very last…..!
In this last stage, he was disappointed…
As he had no “GLORY” from the beginning till the end……!
From the story of this person, what have you learned…?
Don’t waste your time only for money to earn……!
There are also other things which are very important…
Like maintaining relationships, which is leading from the front……!
Monday, October 25, 2010
यह “भारत” देश हमारा है
यह “भारत” देश हमारा है, यह “भारत” देश हमारा…!
“काला” हो – या “गोरा” हो; “अमीर” हो – या “गरीब” हो;
“हिन्दू” हो – या “मुस्लिम” हो; “शिख” हो या “इसाई” हो;
सब को एक ही कहता है, यह “भारत” देश हमारा…!
यह “भारत” देश है मेरा, यह “भारत” देश है तेरा,
यह “भारत” देश हमारा है, यह “भारत” देश हमारा…!
कभी “होली”- तो कभी “दीपावली”; कभी “ईद” – तो कभी “क्रिसमस”;
जनवरी से ले कर दिसंबर तक, यहाँ हर दिन नया “त्यौहार” हो,
हर “त्योहारों” से भरा है, यह “भारत” देश हमारा…!
यह “भारत” देश है मेरा, यह “भारत” देश है तेरा,
यह “भारत” देश हमारा है, यह “भारत” देश हमारा…!
“उत्तर” हो – या “दक्षिण” हो; “पूरब” हो – या “पश्चिम” हो;
चारो ओर जगत में, सबसे ऊँचा देश हमारा,
“चाँद” नहीं ये “तारा” है, यह “भारत” देश हमारा…!
यह “भारत” देश है मेरा, यह “भारत” देश है तेरा,
यह “भारत” देश हमारा है, यह “भारत” देश हमारा…!
“जय हिंद”
-अमित टी. शाह
25th October 2010
Thursday, October 21, 2010
एक “कबूतर”
मेरे आँगन रहने आया था…
मुझे लगा कि हमारे लिए वो,
“शान्ति” का कोई “शंदेश” लाया था…!
फिर मैंने सोचा कि,
मै तो यहाँ पर अकेला ही रहता हूँ,
और हर पल मै तो शान्त ही रहता हूँ…
फिर यह “कबूतर” हमारे लिए,
ये “शान्ति का शंदेश” क्यों लाया था…?
सोच कर यह मनोमन मै,
अपनी ही सोच पर हँस दिया था…
शायद..! सुन कर हमारी हँसी कि आवाज़ को,
वो बेचारा “कबूतर”, वहांसे उड़ दिया था…!
तुरन्त ही रोक कर हँसी को अपनी,
जल्दी से उठ कर जगह से अपनी,
दौड़ता हुआ मै अपने आँगन गया,
और इधर उधर उसे मै ढूंढ रहा था…!
हमने सोचा वो हमसे रूठ गया था…
ना जाने वो कहा खो गया…?
अभी अभी तो वो हमारे आँगन आया था,
इतनी जल्दी वो क्यों उड़ गया…?
फिर कुछ देर के बाद, हमें यह महसूस हुआ,
कि वह “कबूतर” हमारे लिए,
“शान्ति” का कोई “शंदेश” नहीं लाया था…
पर वो तो हमारे शान्ति भरे “आँगन” में,
शायद हमेंशा के लिए रहने आया था…!
एक दिन एक “कबूतर” उड़ कहींसे,
मेरे आँगन रहने आया था…
मुझे लगा कि हमारे लिए वो,
“शान्ति” का कोई “शंदेश” लाया था…!
Monday, October 18, 2010
मेरे ख़यालों की “मलिका” मेरे ख़यालों में रह गई…
कि “एक दिन” मेरा भी आयेंगा,
जब इस “शहझादे” के लिए कोई “शहझादी” लायेंगा…!
लेकिन आज हमें अफ़सोस बस इस बात का है,
कि हमारी पूरी जवानी बीत गयी
और मेरे ख़यालों की “मलिका” मेरे ख़यालों में रह गई…!
“एक दिन” खबर मिली थी हमारे दिल को,
की वो इंतझार किये खड़ी है
ज़िन्दगी के किसी मुकाम पर…;
जब गए उसकी एक झलक पाने को
हम उस मुकाम पर…;
तो न जाने वो कहा खो गई…!
मेरे ख़यालों की “मलिका” मेरे ख़यालों में रह गई…!
फिर “एक दिन” बस एक तसल्ली दिलाने के लिए हमारे दिल को,
ढूँढने निकले हम उनकी परछाई को इधर-उधर…;
उनकी परछाई तो हमें न मिली कहीं भी,
लेकिन ढूँढते – ढूँढते उनकी परछाई को,
हमारी खुद की परछाई भी कही खो गई…;
मेरे ख़यालों की “मलिका” मेरे ख़यालों में रह गई…!
फिर “एक दिन” अचानक हमारे दिल को,
कहींसे कोई खनक सी आई…;
टकोर कर हमारे मन को,
हमारी “अंतरात्मा” हमसे कह उठी,
उठ जा “अमित” जल्ली से,
देख तुज़े मिलने को कोई “अप्सरा” आई…!
उड़ गयी नींद, और टूट गया वो हसीन सपना,
जब आँखे खोली हमने यह सोच कर,
मेरे ख़यालों की “मलिका” अप्सरा बन कर हमें मिलने को आई…;
लेकिन सामने आई और वापस सपनों में वो खो गई…,
मेरे ख़यालों की “मलिका” मेरे ख़यालों में रह गई…!
लेकिन आज भी होंसले बुलंद है हमारे और यकीन है हमें
कि हमारा वो “एक दिन” जल्द ही आयेंगा,
और हमारे लिए ढेर सारी खुशियाँ लायेंगा…;
जब मेरा वो “एक दिन” मेरे ख़यालों कि “मलिका” को
हूबहू हमारे सामने लायेंगा…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
18th September 2010
Friday, October 1, 2010
THE CHANGE OF LIFE
NAME: AMIT TEJALKUMAR SHAH
ADDRESS: 192/17, AMAR APPARTMENTS, NARANPURA
AHMEDABAD – 380 013.
GENDER: MALE
BIRTH DATE: 8TH January 1987
E-MAIL: amit478874@yahoo.co.in
BLOG: http://amit478874.blogspot.com
POET PAGE: http://p4poetry.com/author/amit478874
CONTACT NO.: (M) 98986 94423
EDUCATION: CA FINAL (RUNNING)
CS FINAL (RUNNING)
HOBBIES: TRAVELLING, BLOGGING, PLAYING CRICKET,
WRITING POETRY & NOVELS ETC.
THE CHANGE OF LIFE
Experienced the unexpected
•SYNOPSIS:-
Sometimes in our life it may happens that whatever we really achieve that we never deserves and whatever we really deserves that we never achieve. This is what the message this novel delivers. We find in our life so many turning points. Some are positive where as some are negative. Whatever we do is never been wrong but what is wrong is might be the purpose to do. Sometimes it is very difficult for us, to do whatever we like to do. We have to suffer from lots many pressures in our life from – Family, Friends, Relatives and Society as a whole. In that pressures we take some silly decisions which we are not suppose to take. Ultimately we will have to suffer a heavy loss sometimes. So one thing must be kept in mind is that we must have to take our own decisions rather than to be attracted by others’. One silly mistake might end up our life. Advices may be welcomed from all sources but ultimate decision must be our own. This is what the strong message this novel conveys.
This novel is focused mainly on two characters – Aditya Sahay and Raja Sharma. One by one, incidences happens to them and their life took sharp changes over a period. Ultimately the day came, which had never been expected by them to come. Aditya was the boy from Bangalore who had borne in upper middle class family where as Raja was the born in very poor class family from one small village in Uttar Pradesh and he had lost his parents very early in his life. Once Aditya and Raja met in Mumbai where Aditya was came for his further studies and Raja came in search for better job. Both have the common interest of writing. Aditya had his hobby in writing novels where as Raja was interested in writing poems. Once they came in to contact of each other and became the best friend with the passage of time. After that the real journey of life started for them and they had started facing the changes in their life that they had never expected. In the end they day came when Aditya lost everything he had and on the other hand Raja gets so many thing that he had never expected. This is what all about – “The Change of Life”.
•THE BEGINNING:
The story begins with the burning pyre. The pyre was of the main character of the novel named Aditya Sahay. All family members are standing there across the pyre and crying. Aditya’s friend Raja Sharma was also there with his wife, Jiya Mehra. Raja was one of the very best friends of Aditya and had shared almost all the happy moments with him. That was the four years back when Raja met Aditya and they became friends. Now the Story went in to a flash back when the pyre was burning and Raja disappears in to the past memories.
•BEFORE FOUR YEARS:
After completing his college in Bangalore, Aditya went to Mumbai for his further studies. There he came in to contact with Raja who became his best friend with the passage of time. Raja once helped him to deal with one of the well known production house named – “Bhatt Production House”, the owner of which was Mr. M. B. Bhatt, to sell the novel that he had written. The movie was turned out to be the blockbuster and Aditya became famous in the industry over a night. But the journey was yet not started. Once he caught in to hostility with one of the very well known producer of the industry named Mr. Chaturvedy. Hence, once Mr. Chaturvedy together with Mr. Bhatt planed out to blackmail Aditya. They also got succeed in it. Then onwards the life of Aditya came down from the track. But with the endless support and help from Raja he fought against all the worst situations in his life and ultimately the story has a happy ending.
But in the climax, Aditya died of some reasons. Now to know what was that reasons the novel needs to be read thoroughly. At last the story ended up with coming back to its beginning.
CHAPTER 1: WENT TO MUMBAI, BIG DEAL & BLACKMAILING:
Aditya was very clever and hard working and also very serious about his future. He loved his parents very much as he was the only son of them. He had a keen interest in writing novels from very early of his life. He had written some novels but he didn’t want to get them published as he was writing those novels just as he loved it and it was his passion. Once he went away to Mumbai for his further studies where he came in to contact with one person named Raja Sharma who had the similar interests of writing poems and novels. Raja was very poor. He had lost his parent when he was just 14 years old. He came to Mumbai from the small village of Uttar Pradesh for getting a better job but didn’t get success in it. Aditya helped him a lot in all his problematic conditions. Aditya once also found a job for him. Then onwards they became the best friend of each other. Raja once lost his accommodation due to money problems. On coming known to that Aditya offered him to share a flat with him where he was living alone.
Once Raja read some of the novels written by him and he liked his work. He requested Aditya to get them published and earn some money & appreciations. But Aditya as usual denied his offer. Raja once surfing on net about the publishers to get his poems published. In that, he came to know about one of the Film Production Company named - “Bhatt Production House”. He immediately submitted one of the stories written by Aditya with them to make him happy. But soon after submitting the novel he came to know about those words of Aditya that he would never wish to get them published. He came back to home and didn’t disclose anything to Aditya about the submissions. Soon after a one month he got an E-mail from the “Bhatt Production House” requesting for the detailed synopsis of the novel that he had submitted. The E-mail clearly shows their interest in purchasing the rights of that novel. The E-mail was written by Mr. M. B. Bhatt, owner of the production house itself. Raja was shocked on reading the E-mail and was very happy to read that but the problem was to get Aditya ready to go further in dealing with them.
After a huge effort he took Aditya in to trust. Aditya also got ready to discuss the matter with his parents before any further steps. His parents also suggested him to carry on with the dealings. Then Aditya contact the production house from where the E-mail came and submitted the detailed synopsis as demanded. He received a positive response for it. He was called up to have a meeting with Mr. Bhatt for the final dealing. All was very well settled and very soon the movie was made. The movies turned out to be the blockbuster and Aditya became very famous as a writer in the industry. But even after a big break he didn’t ready to make career in it. He got so many offers from every where but rejected all. Once Aditya received a very huge offer from very well known producer in the industry named Mr. Chaturvedy. But he rejected his offer too. He repeatedly offered by him anywhere. Aditya once was in a party organized by Mr. Bhatt for the golden success for his movie. There again he had been offered by Mr. Chaturvedy to deal with him. He was quite drunk and hence fell in to aggressive arguments with Aditya. Aditya didn’t like that and hence he slapped him in that party between crowds. Then onwards the hostility emerged between them.
Once Mr. Chaturvedy gave a bribe to Mr. Bhatt to organize a party and invite Aditya in that party. He planned out to blackmail Aditya by indulged him into sex with two prostitutes in a drunk condition. But the problem was that Aditya never drinks alcohol. But they made a plan to mix something substance addiction factor in a drink of Aditya. They get succeed in it and then they started blackmailing Aditya. That was the day when the life had taken such a sharp turning that had never been expected by him ever. They keep blackmailing Aditya and bought rights for all the novels written by him without giving him any rewards.
CHAPTER 2: AFTER TWO YEARS: THE SECRET DISCLOSED
Once Raja came to known about the fact and hence he suggested him to file an F.I.R. against them for their blackmailing. But Aditya denied. Raja was in search for the reason why Aditya was denying him to prosecute against them. But he came to know about the true reason when Aditya got engaged with his childhood friend Jiya Mehra. On the night after completed with the engagement ceremony Aditya suddenly got illness and hence he was immediately got hospitalized. In a blood report their family doctor, Dr. Mathur was completely shocked to know that Aditya had been caught with an AIDS. He was then a worried man about to whom and how he could disclose that matter. He disclosed the fact to Raja. Raja was also got shocked on hearing that news. But they can’t do anything. Raja and Dr. Mathur discussed the matter with the Aditya and tried to know how he caught with an AIDS. Aditya was very much frustrated and disappointed at the first sight on hearing about it. But he ultimately explained to them in details about all those happened with him. Then the big challenge for Aditya was that he could not marry to Jiya & keep himself away from having an intercourse with her even after a marriage. The trio made a plan for that. Aditya went back to Mumbai with Raja by disclosing some fake reasons.
CHAPTER 3: AFTER TWO MONTHS: COURT’S PROCEEDINGS & THE FINAL JUDGEMENT PRONOUNCED:
As one day the matter had to be disclosed to all, Dr. Mathur called Aditya and advised him that he should sue Mr. Bhatt and Mr. Chaturvedy without any worry. He also suggested him one of his friend in Mumbai named Mr. A. T. Shah to help him out in the case, who was a well known lawyer in a city. After a deep thinking on it Aditya showed his readiness to sue both of them. Now the day came when he sued the duo. That was the hottest news in the industry and spread all over within a day. Aditya’s parents and Jiya came to know about the fact but before they react much on the issue Dr. Mathur in Bangalore controlled the situation over there and took them all in to trust. Now there was no fear for Aditya to fight for the case. On the other hand as expected by Aditya the video footage and all those photographs had been published all over the web and media. It was far enough to crush Aditya’s gentleman image. But he didn’t care about it as he knew that he had a chance to prove his innocence. But then the problem for him was how to gather a strong proof to prove his innocence.
The day came when the hearing was going on in a court to order the justice. Everyone from all over the industry, city and state had frozen their eyes on the case. The case was not strongly in favor of Aditya as he had not any proofs, strong enough to prove his innocence. But before the hearing was completed one lady entered the court room and introduced her self as an eye witness of the incidence happened with Aditya. Her name was Trisha. She was given a bribe to sleep with Aditya and indulge him in to sex with her. She was offered five lakhs rupees for that. She further spoke in a court room that she was already infected by an HIV AIDS but didn’t know the fact at that time. Now as she was counting last few days of her life. She regrets for all those she had done and spoiled the life of so many people like Aditya just for money. She was literally crying and blaming herself in a court for her act. She told that when she read about the news she immediately decided to help Aditya. And hence she was there to accept all the sins she incurred and present herself as an eye witness and then the judge took her statements and pronounce the final judgment in favor of Aditya.
All was then well settled. Aditya forgive her for all her sins and thanked her that if she had not came there at the right moment he might have lost the case. The order was given in favor of Aditya and Mr. Bhatt and Mr. Chaturvedy was sent for imprisonment for five years for all their crimes. That was how the novel had a happy end. But one thing was still pending for Aditya to comply with. He was now counting his last few days of his life and was unable to give the happiness to Jiya. So he requested Raja and Jiya to marry each other before he die. After a long discussion and understanding they got ready to marry. Finally in the end Aditya died of incurable illness of HIV AIDS and the story came to the moment from where it begins i.e. the burning pyre.
आओ मिल कर एक नया “ईतिहास” बनाएँ…
आज यहाँ पे भगवान राम के भक्त भी है,
और खुदा के नेक बन्दे भी है…
आज यहाँ पे “इंसान” तो है,
लेकिन मै पूंछता हूँ,
“इंसानियत” कहाँ है…?
हिन्दु कहता है,
“अयोध्या हमारे राम की जन्म भूमि है…!”
मुसलमान कहता है,
“अयोध्या उनकी कर्म भूमि है…!”
लेकिन मै पूंछता हूँ,
“वे लोंग यह क्यों भूल जाते है,
अयोध्या सब से पहले “भारत” की भूमि है,
और भारत की भूमि
हम सब भारत वासियों की भूमि है…!”
सच तो यह है कि,
राम और रहीम एक ही है,
“इंसानियत” का धर्म ही सबसे नेक है…!
मेरी देश वासियों से दिल से ये गुज़ारिश है….
“कि कुछ चन्द देश द्रोहियों के सूर से सूर न मिलाएँ,
दुश्मनों कि हर चाल को नाकाम बनाएँ,
कल को चाहे कई भी फैसला क्यों न आए,
हम अपने आप को “शशक्त” बनाएँ,
देश में “अमन” और “शांति” बनाएँ,
अपनी अपनी ज़ाह्ती दुश्मनी को भूल कर,
आओ मिल कर एक नया “ईतिहास” बनाएँ,
और वही “एकता” कि ताकत को हम आज फिर से दोहराएँ …!”
आखिर में बस यही कहना चाहूँगा जाते जाते…
“अगर आप “हिन्दु” है तो “मुसलमान” को,
और अगर आप “मुसलमान” है तो “हिन्दु” को,
अपना “भाई” समझ कर उनको गले लगाएँ
आओ मिल कर एक नया “ईतिहास” बनाएँ…!
जय हिंद…!! जय भारत…!!
-अमित टी शाह (M.A.S.)
29th September 2010
मेरी आवाज़ में वो धून नहीं है…(“गीत”)
मेरी आवाज़ में वो धून नहीं है,
तू नहीं है तो सुकून नहीं है! (१)
कहाँ खो गई हो तुम इन बहारों मै,
हम को तो ये भी मालूम नहीं है! (२)
तुने तन्हाँ किया मेरे दिल को,
बेकरारी अब बढ़ती जा रही है! (३)
लौट कर आ जाओ मेरे दिल में,
सपना बनकर हमे ना तड़पाओ तुम! (४)
साथ जीने की तमन्ना है दिल मै,
बसा लों हम को भी अपने दिल मै! (५)
- अमित शाह (M.A.S.)
24th January, 2007
Wednesday, September 29, 2010
हम भी किसी को “बेशुमार” प्यार करते है…
देखने को उनकी बस एक झलक हम तरसते रहते है…!
उनकी हर एक अदाओं पे हम मरते है,
लेकिन कमबख्त हम प्यार का ईज़हार करने से डरते है…!
उनकी याद में हम आँखों से कुछ नगमें रोज़ बहाँ लेते है,
तोड़ने को तो दुनियाँ की हर “रस्मों” को हम तैयार रहते है…!
क्या झेल पाएंगा तू, उनसे बिछड़ने का “गम”…?
बस यही “सवाल” हम अपने आप से रोज़ किया करते है…!
कुछ देर के लिए जीते है, कुछ देर के लिए मरते है,
हम भी किसी को “बेशुमार” प्यार करते है…!
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…
निकले थे हम इस दुनियाँ वालों को बदलने,
लेकिन दुनियाँ को बदलते बदलते,
हम खुद ही पुरे बदल गए यारों…!
एक चाह थी इस दुनियाँ से हर गम को मिटानें की,
लेकिन खुद ही “अमृत” समझ कर हर गम,
अपनी ज़िन्दगी के पी गए यारों…!
सोचा था सब को साथ ले कर आगे बढ़ेंगे,
लेकिन “मंजिल” तक पहूँचने से पहले ही,
बिच राह में रास्ता भटक गए यारों…!
ख्वाहिश यही थी, की अपना बना कर,
हर किसीको अपने दिल में रखेंगे,
लेकिन हम खुद ही “सपना” बन कर,
किसी की नींदों में खो गए यारों…!
सोचा था इस पूरी “ज़िन्दगी” को हँसते हुए बिताएंगे,
लेकिन आज कुछ बेचारे “बेगुनाहों” की,
आँखों में आंसू देख रो गए यारों…!
आज इस दुनियाँ में डर का मोहोल
कुछ इस कदर फ़ैल गया है,
कि हर “इंसान” चैन से सोना तक भूल गया है,
बावजूद इसके, हम तो कब के
चैन कि नींद सो गए यारों…!
हम तो इस “ज़िन्दगी” को जी गए यारों…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
29th September 2010
Monday, September 27, 2010
“वक़्त”
जहाँ “वक़्त” की कमी कुछ इस तरह खलती है….!
“ख्वाहिशें” तो बहुत कुछ है मुझमे,
लेकिन कुछ पाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
पास मेरे सब कुछ है,
लेकिन कुछ खोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
नींद तो बहुत है इन आँखों में,
लेकिन चैन से सोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
प्यास तो बहुत लगी है हमको,
लेकिन पानी तक पिने के लिए “वक़्त” नहीं…!
दर्द तो बहुत होता है हमको,
लेकिन महसूस कर “चींखने” के लिए “वक़्त” नहीं…!
हर पल खुश रहते है हम,
लेकिन खुल कर हँसने के लिए “वक़्त” नहीं…!
गुस्सा तो बहुत होते है हम,
लेकिन किसी से झगड़ने के लिए “वक़्त” नहीं…!
आँखे है आंसुओं से भरी हुई,
लेकिन रोने के लिए “वक़्त” नहीं…!
जीना तो बहुत चाहते है हम,
लेकिन साँसे लेने के लिए “वक़्त” नहीं…!
अपनों से बहुत प्यार करते है हम,
लेकिन उस प्यार को जताने के लिए “वक़्त” नहीं…!
दिन में “पाँच” घंटे रहते है, “परिवार” के साथ,
लेकिन “पाँच” मिनट भी बातें करने का “वक़्त” नहीं…!
चोट तो बहुत गहरी लगी हुई है हमको,
लेकिन चोट से उभरने के लिए “वक़्त” नहीं…!
विद्वान् बनना चाहते है हम,
लेकिन पढाई करने के लिए “वक़्त” नहीं…!
निकले तो थे इस दुनिया को बदलने,
लेकिन खुद को बदलने के लिए “वक़्त” नहीं…!
हर रोज़ “मंदीर” में जाते है हम,
लेकिन भगवान के आगे सर झुकाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
देते है हम “सहारा” सब को,
लेकिन खुद को संभालने के लिए “वक़्त” नहीं…!
कहना तो बहुत कुछ चाहते है हम,
लेकिन “ज़ुबान” खोलने के लिए “वक़्त” नहीं…!
लिखना भी बहुत चाहते है हम,
लेकिन “कलम” तक उठाने के लिए “वक़्त” नहीं…!
आज “वक़्त” की मुझे सबसे ज्यादा “झरूरत” है,
लेकिन “कम्बख्त”, “वक़्त” को हमारी खातिर रुकने के लिए “वक़्त” नहीं…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
27th September 2010
Sunday, September 26, 2010
You are “MY Dear”…
Even though,
You are not so “Near”
Don’t feel “Fear”…
Even though,
You get a little bit “Tear”
You will get your
Destiny very “Near”…
Just give yourself
One mone “Geear”
If you still in a “Fear”…
Then just remind me,
I will be ready to “Cheear”,
Because after-all…
You are “My Dear”…
- Amit Shah (M.A.S)
12th June, 2008.
मत पडो इस इश्क की उलज़न् मै…
किसीसे इश्क करने के लिए इस दिल को समज़ाना पड़ता है…!
इश्क का सागर बहूत गेहरा है…
गलीयाँ अजीब और रास्ता बहूत कठिन है…!
मै तो कहता हूँ की…
मत पडो इस इश्क की उलज़न् मै..क्योंकी…
इसे सुलज़ाने के लिए खुद को उलज़ाना पड़ता है…!
अगर ना सुलज़ा पाए इसे तो भगवान भी कुछ नहीं कर सकता,
आखीर मै दिलवालों को भी अपना दिल खोना पड़ता है…!
-Amit Shah (M.A.S.)
जिन्दगी की किताब…
आज हम अपनी ज़िन्दगी की किताब खोलते है…
” दिल में दर्द था हमारे..,
जिन्हें हम हँस कर भुला देते थे…
आज उस दर्द को हम बयाँ करते है…;
नफ़रत करते थे बरसों पहले हम जिन्हें…
आज उनसे मोहब्बत करते है…;
शम्मा में परवाने जलते है उसी तरह…
आज हम इस कलियुग में जलते है…,
फर्क बस इतना है कि…
परवाने शम्मा में जल कर..
उजाला फैलाते है, और…
इस कलियुग में लोग हमें उजाले में जलाते है…;
मगर आज…जल कर भी हम जिंदा है…
तो बस इसीलिए…,
हर बार आप जैसे दोस्त ही हमें..
सहारा देते है…; ”
-Amit Shah (M.A.S)
Friday, September 24, 2010
पत्थर बन गया है दिल आज…
रोने की कोई आस नहीं; (१)
जल रहे है हम आज…
फिरभी हालात हमारे बेबस नहीं;(२)
बरसने दो आसमान से पानी आज…
पिने की कोई प्यास नहीं;(३)
बदल गयी है दुनिया और…
बदल गए है दुनिया वाले आज…
परायों की तो बात ही क्या करे…
आज तो अपना भी कोई पास नहीं;(४)
साँसे चल रही है आज भी…
पर हर-पल मौत का पैगाम सुनाती है,
जी रहे है हम आज…
पर वजह कुछ ख़ास नहीं;(५)
बदल गया है तू भी कितना…
आईने में अपनी सूरत तो देख,
आँखों में नमी है और होठों पे हँसी है आज…
पर खुद पे ज़रासा भी “विश्वास” नहीं;(६)
-Amit Shah (M.A.S.)
7th March, 2009
“अदालत” में हर रोज़ यह मंझर होता है…
“सुनवाई” को “देखने” हर “इंसान”
बची “इंसानियत” को साथ ले घर से आता है
और यहाँ वह सारी बेच घर वापिस जाता है …!
“अदालत” में खड़ा हर “इंसान”
“सच” की ओर “देखता” है, लेकिन
“झूठ” को ही “सुनता” है…!
वैसे तो दुनिया का दस्तूर है,
“जो दिखता है, वही बिकता है…!”
पर “न्यायतंत्र” की तो बात ही कुछ उलटी है…
यहाँ पर जो “सुनता” (Judges & Lawyers) है, वो ही “बिकता” है…!
और फिर “काठहरे” में खड़ा हुआ “लाचार” “सच”,
देख कर झूठ की आँखों में
सब के सामने “रोता” है… और
फिर “इन्साफ की दैवी” की ओर देखता है
और धीरे से हंस देता है…!
आखिर में,
वह सब “भेडियें” जो “इंसान” के रूप में बैठे थे “अदालत” में,
देख कर यह “गुनगुनाता है,
ऐसा तो हररोज़ यहाँ पे होता है, फिर
देख कर “तमाशा” चला जाता है…! और
दुसरे दिन वापस चला आता है…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
24th September 2010
Thursday, September 23, 2010
आज ये दुनिया जल रही है,…
चिंगारी उठी थी नफरत की सालों पहले
वो अब कुछ ज्यादा ही बढ़ रही है…;
आज यहाँ इन्सान नहीं पर
इंसानियत ही मर रही है…;
न जाने क्यों आज ये दुनिया जल रही है…!
परायों के लिए लोगों के दिल में आज
दुश्मनी कुछ इस कदर बढ़ रही है…;
और अपनों के बीच में
अनदेखी सी कोई दीवारें बन रही है…;
न जाने क्यों आज ये दुनिया जल रही है…!
आज भी यह दुनिया जन्नत से कोई कम नहीं है,
लेकिन जन्नत जैसी इस दुनियाँ में
इन्सान नामक भेडियें भी कुछ कम नहीं है…;
क्या इसीलिए आज ये दुनिया जल रही है…!
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
मै सपनो के सहारे चल रहा हु,
हर पल धूप में पल रहा हु…;
मै बिना आग के जल रहा हु,
मन ही मन में तड़प रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
मेरी आखें जैसे सहम गयी है,
आंसुओ की नदी मै बहा रहा हु…;
मेरी साँसे जैसे रुक गयी है,
मै चीख-चीख कर कुछ कह रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
न कोई मेरा यहाँ पे अपना है,
न कोई मेरा यहाँ पे पराया है…;
फिरभी मन में आस लिए,
मै न जाने किसको ढूँढ रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
खुले गगन तले मै जी रहा हु,
वीरान सड़कों पे मै सो रहा हु…;
हर पल लहरों के साथ मै ज़ूम रहा हु,
बिच सागर में जैसे मै खेल रहा हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
कोई मुजे शायद देखता नहीं,
पर मै सबको देखता हु…;
कोई मुजे शायद पहचानता नहीं,
पर मै सबको पहचानता हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
हर दिन – हर पल नए दुख मै ज़ेलता हु,
खुशियों को तो बस मै दूर से ही देखता हु…;
मै इन्सान हु फिरभी इंसानों से डरता हु,
कभी – कभी अपने आप से ही मै लड़ता हु…;
मै नन्हा हु, एक मुन्ना हु,
ज़रा कोई मुझे देखो मै तन्हा हु…!(२)
-अमित शाह (M.A.S.)
“हम भी है प्यार मै…”
दूर से देखता हू तो लगता है…
जैसे सोने के तार है; (१)
आँखों में जैसे उसकी बिजली चमकती है,
चलती है तो जैसे कोई अप्सरा लगती है; (२)
कितनी मीठी है बाते उसकी,
सुना था कल… लेकिन,
लगता है जैसे आज ही सुनी है; (३)
जब भी उसे सोचता था,
तो नींद से उठ जाता था;
जब उसे देखा तो पता चला,
की.. कभी सोया ही नहीं था; (४)
उसकी एक ज़लक देखने के लिए मै कितना बेताब था,
उसे देखा तब पता चला,
शायद… उसके लिए ही मै जीता था; (५)
उसे पाना ही मेरा सपना है,
उसे पा कर ही ज़िन्दगी जीने मै मज़ा है; (६)
दुःख कभी मिले ना उसे, बलकी…
मेरा सुख भी मिल जाए उसे;
जीवन मै रब से यही तो एक दुआ है,
की.. वो जो चाहे, मिल जाए उसे; (७)
यह सुन कर तुम्हे भी लगेगा………..
“तन्हाई है प्यार मै, जुदाई है प्यार मै,
ख़ुशी है प्यार मै, ग़म है प्यार मै,
जीत है प्यार मै, हार है प्यार मै,
हमे सब कुछ पता है….
लेकिन क्या करे, हम भी है प्यार मै”
- अमित शाह (M.A.S.)
28th October, 2006.
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
कितने हसीन थे बचपन के वह दिन,
न कोई हमसे बड़ा था – न कोई हम से हीन…!
जब भी याद करते है बचपन के उन् दिनों को,
तो कुछ पलों के लिए वक़्त जैसे थम सा जाता है…!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
बचपन की यादें जीवन की अनमोल यादें होती है,
हर पल कुछ नया जानने की एक तलबसी होती है,
किसीने हमसे कहा था की – “बचपन बड़ा सुहावना होता है”
आज हमें वह इंसान याद आता है….!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
मिट्टियों के ढेर में बिताया हुआ हर वो पल याद आता है…
बार बार गिरा कर बनाया हुआ पत्तों का वह “महल” याद आता है…
आज जब भी देखते है किसी बच्चे को खेलते हुए…
तो हमें बचपन में खोया हुआ हमारा वह “खिलौना” याद आता है…!
आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!
“मम्मी” की गोद में बिताया हुआ हर एक पल याद आता है…
“पापा” की उंगली पकड़ कर के चलना सिखा था हमने,
आज हमें वो “वक़्त” याद आता है…!
सोचता हूँ की – लौट कर चला जाऊ “बचपन” के उन् दिनों में…
क्योंकि….”आज हमें हमारा बचपन याद आता है…!”
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
22nd September 2010
मतलबी इस दुनियाँ में, आज हर “आँख” है “रोती”…!
आज हर “आँख” है “रोती”…!
दूसरों के “जज़्बातों” से खेलने वाले यहाँपे,
हर एक की “नियत” है “खोटी”…!
राजनीती के कठहरे में खड़े,
हर नेता की “बातें” है “मोटी”…!
अगर नसीहत दे कुछ बदलाव की,
तो बोलते है,
“बेटा…! अभी आप की उम्र है “छोटी”…!
सिक्को की दो बाज़ुए भी यहाँ
अब तो पहचाननी है मुश्किल,
जहाँ एक बाज़ु है सच्ची
तो दूसरी बाज़ु है “खोटी”…!
सरकारी आंकड़ो के हिसाब से
गरीबों की “लिस्ट” है “मोटी”,
यह आंकड़े किस काम के,
जब तक एक भी गरीब को न मिल सके “रोटी”…!
नहीं बदलेंगा यह “देश” तब तक,
जब तक “जनता” ही रहेंगी “सोती”….!
मतलबी इस दुनियाँ में,
आज हर “आँख” है “रोती”…!
एक “गूंज” ऐसी उठी…
कि हमारा दिमाग उस गूंज को सुन गूंज उठा…;
अभी तो सोच ही रहा था मै,
कि वह क्या था..? और कौन था..?
जो हमसे है इतना रूठा…;
उतने में कहींसे एक आवाज़ सी आई,
और सोते हुए भी मेरा मन
सपनों में जाग उठा…;
धिन्ढूरकर हमारे मन को,
मेरा “ज़मीर” हमसे कह उठा…;
उठ जा ‘अमित’ जल्ली से,
एक बड़ी सी “आंधी” आ रही है,
और साथ में अपने
‘महँगाई’, ‘भ्रस्टाचार’, और ‘गरीबी’ ला रही है…;
अचानक हमारे दिलों-दिमाग में
एक अजब तूफ़ान सा उठा…;
चारो ओर एक गहरा “सन्नाटा” सा बिखरा हुआ था,
जब सुन कर मेरे “ज़मीर” को
“झपट” कर अपने बिस्तर से मै जाग उठा…;
अब नहीं जीना है हमको,
मतलबी इस दुनिया में…
“भयावह” यह “सपना” देख कर,
मनोमन अपने “ज़मीर” से मै कह उठा…;
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
23rd September 2010
Tuesday, September 21, 2010
जग भला – भगवान भला…
भगवान से भला यहाँ कौन भला…!
“इंसान” तो है एक खेलता खिलौना…
“चाभी” है जिसकी भगवान के यहाँ…!
कैसे जाओंगे तुम भगवान के पास…
भगवान तो है सूरज के पास…!
पहूँचना हो अगर तुम्हे भगवान के पास…
तो जाना होगा तुम्हे इस “संसार” से भाग…!
लेकिन कैसे जाओंगे तुम इस “संसार” से भाग…
जबकि, “चाभी” ही नहीं है आप की आप के पास…!
इसीलिए हम कहते है,
“इंसान” बन कर रहो ‘इंसानों’ के साथ…
जब वो चाहेंगा तब बुला लेंगा आप को अपने पास…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
20th September 2010.
चलो मिल कर लेते हे एक “शपथ” आज…
अपनाए “महात्मा गांधीजीके” सिंद्धांतो को आज…
“अहिन्सा” से भर से पूरी दुनिया को आज…
कल हुई गलतियों को सुधारे आज…
बदल दे “राजनीति” के हर एक पहलू को आज…
छोड़ दे देश के लिए जीने की “शर्म” को आज…
याद करे उन “शहीदों” के “शहादत” को आज…
मिलाले कन्धों से कंधे और कदमो से कदम आज…
दिखा दे दुनिया को “एकता” की ताकत आज…
दे दे दुश्मनों को मूंह तोड़ जवाब आज…
उखाड़ फैके “आतंकवाद” को जड़ मुड से आज…
चलो मिल कर लेते हे एक “शपथ” आज…
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
20th September 2010.
अंदाज़े शायराने..
Enjoy..! :-)
“गुज़रा हुआ “वक़्त” कभी वापस आता नहीं,
आने वाला “वक़्त” कभी रुकता नहीं;
यह तो “वक़्त” – “वक़्त” की बातें है, मेरे दोस्त…!
आगे बढ़ने वाला बन्दा “वक़्त” के आगे कभी झुकता नहीं…!” (१)
“नयी “मंज़िलों” को पाने के लिए “मंजिलें” बनानी थी हमें,
“मंज़िलों को साथ ले कर “मंजिलें” पानी थी हमें;
खुश नसीब थे हम…
कि “मंज़िलों” को पाते पाते वोह राह मिल गयी हमें,
जिस पर चलते चलते, “मंजिल” तक पहुँचने से पहले ही
“मंजिल” मिल गयी हमें….!” (२)
“दुनियाँ में “दोस्त” से बढ़कर जो कोई चीज़ है,
तो वह है “दोस्ती”…!
“दुनियाँ” में “गम” से बदतर जो कोई चीज़ है,
तो वह है “गुस्ताखी”…!
क्योंकी….
“दोस्त” तो हर कोई बनता है, मगर
“दोस्ती” हर कोई नहीं निभाता…!
“गुस्ताखी” तो सब से होती है, मगर
“गम” हर किसीको नहीं मिलता…! (३)
“डरता” तो हर कोई है,
मगर फर्क बस इतना है…
“डरने” वाला बन्दा अपने “डर” कि वजह से
“डर” के सामने लड़ने से “डरता” है…!
और बेख़ौफ़ बन्दा अपने हौंसले कि बदौलत
“डर” के सामने “डरने” से “डरता” है…! (४)
-Amit T. Shah (M.A.S.)
21st September 2010
Saturday, September 18, 2010
ये बात जान ले तू…
जब तक ईश्वर सीड़ियाँ रखता जायेंगा…!
मगर जिस दिन ईश्वर सीडी रखना भूल गया…
उस दिन चाहे कुछ भी करले…
बेशक़ तू गिर ही जायेंगा…!
कंधों से कंधें और कदमों से कदम मिलाके,
चलना सीख ले सभी के साथ तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
की बेहाल हो जायेंगा तू, और तेरा होंसला टूट जायेंगा…!
‘नफ़रत’ को अपने दिल से,
और ‘कायरता’ को अपने दिमाग से निकाल फैंक तू…
वरना इस नफरतों के बहाव में तू ऐसा बह जायेंगा…
की आँसूओं के सागर तले तू डूब जायेंगा…!
अभी से संभालना शुरू कर दे अपनें ‘जझ्बाँतों’ को तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
जब कहीं दूर – अकेला, अंजान रास्तों पे तू भटक जायेंगा…!
दुनियाँ के ‘दस्तूरों’ को जितना हो सके उतना जल्दी समझ ले तू…
वरना एक दिन ऐसा आयेंगा,
जब अपने ही किये पर तू पछतायेंगा…;
लेकिन तब तक तो बहुत देर हो गयी होंगी…
जब तुझे यह समझ आयेंगा…!
इसीलिए हम कहते है…ईश्वर से उलझना छोड़ दे तू…
क्योंकी…जिस दिन ईश्वर सीडी रखना भूल गया…
उस दिन चाहे कुछ भी करले…
बेशक़ तू गिर ही जायेंगा…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
17th September 2010
अनमोल रत्नों को एक “सलामी”…
सबसे पहले तो इस ‘देश’ के सभी ‘सिपाही’ को मेरा “सलाम”…!
और देश के लिए ‘शहादत’ को गले लगाने वाले,
हर एक ‘शहीद’ को मेरा “सलाम”…!
‘डॉ. ऐ. पी. जे. अब्दुल कलाम’ साहब की तो बात ही कुछ निराली है…
हमारे देश के वे ‘Missile Man’ कहलाते है…!
‘Missile’ से भी तेज़ उनका दिमाग है…
विनम्रता से भरा उनका व्यक्तित्व है…
कलाम साहब, आप को मेरा लाख लाख “सलाम”…!
बात करे अगर खेल की तो…
‘Cricket’ में ‘सचिन तेंदुलकर’ को मेरा “सलाम”…!
‘Chess’ में ‘विश्वनाथन आनंद’ को मेरा “सलाम”…!
‘Shooting’ में ‘अभिनव बिंद्रा’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘Badminton’ में ‘साइना नेहवाल’ को मेरा “सलाम”…!
‘रफ़ी दा’…’किशोर दा’…और ‘मुकेशजी’ के हर वो,
यादगार ‘अंदाज़’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘ऐ. आर. रहमान’ के ‘शाश्वत’ संगीत को मेरा “सलाम”…!
सब की प्रिय ‘लताजी’ के ‘कंठ’ के हर एक ‘सुर्रों’ को मेरा “सलाम”…!
और ‘अमिताभ बच्चनजी’ के ‘शाहेंशाहीं’ अभिनय को मेरा “सलाम”…!
‘अंतरिक्ष’ में जाने वालीं प्रथम भारतीय महिला,
‘कल्पना चावला’ को मेरा “सलाम”…!
और उन्हीके नक़्शे कदमों पर चलने वालीं,
और दूसरी बार ‘अंतरिक्ष’ में जाने के लिए तैयार,
‘सुनीता विलियम्स’ को भी मेरा “सलाम”…!
आखिर में देश के हर एक ‘देश वासिओं’ को मेरा “सलाम”
आज ठान ही ली है, “सलामी” देने की,
तो हम कैसे भूल सकते है ‘p4poetry’ के हमारे प्यारे ‘कविओं’ को…
‘p4poetry’ के सभी ‘कविओं’ एवं ‘दोस्तों’ को मेरा “सलाम”…!
सबसे ज्यादा कविताएँ लिखने वालें,
‘विश्व नंदजी’ (Sirjee) को मेरा “सलाम”…!
और हर पल सब का होंसला बढ़ाने वालें,
‘रेनू राखेजाजी’ को मेरा “सलाम”…!
एक से बढ़ कर एक पंक्तियाँ रचने वालें,
‘सिद्ध नाथ सिंह’ को मेरा “सलाम”…!
और जिनके बेहतरीन ‘शायराना’ अंदाज़ है,
वे ‘हरीश चन्द्रजी’ को भी मेरा “सलाम”…!
“आप हमारा सलाम स्वीकार करे…”
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
18th September 2010
Friday, September 17, 2010
बारिश आई… बारिश आई…
सबको भिगोंने बारिश आई…!
सुबह को आई, रात को आई…
कल आई थी और आज भी आई…!
बिना रंगों के पानी से ही…
होली जैसा मोहोल बनाने…! बारिश आई…(१)
सात रंगों को संग मिलाने…
आसमान में बिजली चमकाने…
बूंदों को एक साथ गिराने…
नये – नये करतब दिखाने…! बारिश आई…(२)
प्यासे की हर प्यास बुज़ाने…
धरती पर हरियाली लाने…
नदियों को पानी से भरने…
पहाड़ों को अंबर से छुपाने…! बारिश आई…(३)
पेड़ों की घटायें बढ़ाने…
खेतों को नयी फसलों से सजाने…
सागर को मोती से भरने…
सूरज को बादलों मे छुपाने…! बारिश आई…(४)
मन प्रेमियों प्रेम जताने…
प्यासे दिल मे आस जगाने…
नफरत की दीवार गिराने…
बूँद से हर आंसू को मिलाने…! बारिश आई…(५)
हर दिनों को त्यौहार बनाने…
कलियों मे से रंगीन फूल खिलाने…
मिट्टी की मीठी सी महेक फ़ैलाने…
मौसम को हर पल हसीन बनाने…! बारिश आई…(६)
मेंढकों की अजीब आवाज़ सुनाने…
कोयलों के सुरों से सुर मिलाने…
गरजते बादलों की बादशाहत दिखाने…
तन और मन मे ताज़गी जगाने…! बारिश आई…(७)
कभी अपने रौद्र रूप से…
इंसानों को यह एहसास दिलाने…!
तो कभी अपने सौम्य रूप से…
किसानो का साथ निभाने…! बारिश आई…(८)
बारिश आई… बारिश आई…
सबको भिगोंने बारिश आई…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
13th September 2010.
“गुज़ारिश”…
आज अपने आप से ही डर रहा हूँ…!
कल तक इस दुनिया वालोंसे झगड़ने वाला मै…
आज अपने आप से ही झगड़ रहा हूँ…!
शायद कोई तो होंगा मेरे जैसा इस पुरे जहाँ में…
आज तक उस चहेरे को मै ढून्ढ रहा हूँ…!
जिंदा रहने की कोई ख़ास वजह तो नहीं है…
पर अपनी साँसों की बदौलत मै जी रहा हूँ…!
खुशियों के आँसू बहाए हुए एक अरसा हो गया…
आज गम के आँसू मै बहा रहा हूँ…!
गम तो मिलते रहते है, ज़िंदगी के हर मोड़ पे…
लेकिन अमृत समज कर पिए जा रहा हूँ…!
पल पल गुज़रता जा रहा है हर पल…
लेकिन मै वहीं का वहीं ठेहर गया हूँ…!
मालूम है हम को, की कोई हमसफ़र नहीं मिलेगा मुजे…
फिरभी किसी के इंतज़ार में नगमे बहा रहा हूँ…!
एक छोटी सी उम्मीद लिए इस दुनिया में मै आया था…
पर खाली हाथ ही वापस लौट रहा हूँ…!
बाढ़ आई थी नफरत की बरसों पहले…
आज तक उसमे बह रहा हूँ…!
बस एक दफा इन्सान बन कर तो देखो…
एक आखरी “गुज़ारिश” मै कर रहा हूँ…!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
15th September 2010
यह समां शायराना….
मगर इश्क के बारे में हम कुछ यूँ जानते थे…
“मेहबूबा को समझाने के लिए उनसे इश्क करना पड़ता है…
इश्क करने के लिए इस दिल को समझाना पड़ता है…
यह इश्क की अजीब चीज़ है मेरे यार…;
जिसमे मंजिल तो होती है…
मगर मंजिल तक पहूँचने का रास्ता ढूंढना पड़ता है…!” (१)
आओ अब सुनाता हु मै आप को मेरी पूरी कहानी…
“हाथों में लेकर गया था फूल “गुलाब” का…
देखना था आज जोर हमारे “रूआब” का…
मै तो पाने गया था उनसे “एहसास” बस कुछ पलों का…
मगर हमे तो उनसे मिल गया “प्यार” जनमों जनम का…!” (२)
फिरभी मै आप को एक नसीहत देना चाहूँगा….
प्यार करने से पहले आप को इत्तेला करना चाहूँगा…
“मत पड़ो इस इश्क की उलझन में…
क्योंकी…इसे सुलझाने के लिए…खुदको उलझाना पड़ता है…;
अगर ना सुलझा पाए इसे,
तो फिर भगवान् भी कुछ नहीं कर सकता…
आखिर में “दिलवालों” को भी अपना दिल खोना पड़ता है…!” (३)
प्यार करने को तो हमने कर लिया…
पर उनसे प्यार का हमें क्या सिला मिला…
आओ अब उनकी दास्ताँ सुनाते है…
“बंदगी के आगे ज़िंदगी बेबस है…
ज़िंदगी के आगे लोग बेबस है…
बेबसी की हद तो देखो…
उसने जिस आवाज़ से हमको पुकारा था…
आज वोह आवाज़ बेबस है…!” (४)
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
16th September 2010
सोचता हूँ अक्सर तन्हाई में…
की ज़िंदगी में ढेर सारी खुशियों को मै पाऊं…
अपनी काबिलियत के दम पर ही हर मै कमियाबी को पाऊं…
जीवन में हर दम आगे ही आगे बढ़ता जाऊं…
पंछी बन कर मै आसमान में उड़ता जाऊं…
आसमान को चीरते हुए मै आगे बढ़ता जाऊं…
तारा बन कर मै सदियों तक आसमान में चमकता रहूँ…
चाँद की रोशनी में मै गुल – मिल जाऊं…
किरने बन कर वापस धरती पर मै आऊं…
आप जैसे प्यारे से दोस्तों को मै मिलूं…
और फिर सोचुँ…
शायद…मै वापस “इंसान” बन जाऊ…!!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
17th September 2010
Tuesday, September 14, 2010
कहानी हम और आप की...
और तुरंत ही हम पर गुस्सा हो गए थे आप…!
माफ़ी मांग ली थी हमने तो आप से…
फिरभी हमसे झगड़ दिए थे आप…!
फिर कुछ पहचान निकली हम और आप की…
तो बाद में शरमा कर हँस दिए थे आप…!
हमसे माफ़ी मांगने की बजेह…
“आप यहाँ कैसे..?” यह हम से पूंछ रहे थे आप…!
चहरे पर ख़ुशी साफ़ साफ़ झलक रही थी मेरे…
क्योंकी…, बरसो बाद जो मिले थे आप…!
आप को यह पूछने से, रोक न पाए ज़बान को…
“क्या अब तक कुवांरी है आप…?”
सवाल ज़रूर अजीब था मेरा….
पर “हाँ” कहकर हँस दिए थे आप…!
सुन कर आप के जवाब को हम, कुछ देर के लिए गुमसुम हो गए थे…
क्योंकी…शायद मेरी ज़िंदगी की ज़रूरत बन गए थे आप…!
फिर शायद प्यार से, देख कर मेरी आँखों में…
हम से अपने गुनाह की, माफ़ी मांग रहे थे आप…!
मगर फिर कोई रास्ता न मिलने पर…
हमसे दोस्ती का वादा कर दिए आप…!
ज़िन्दगी के आखिरी मोड़ पे,
जब अस्पताल की बिस्तर में पड़े थे हम…;
हमारे पास आ कर के शायद कुछ कह रहे थे आप…!
हम ठीक से सुन तो नहीं पा रहे थे आप को…
पर यह ज़रूर देख रहे थे…
सहमी हुई आँखों से बूंद आंसूओ के गिरा रहे थे आप …!
ख्वाईश यही रहेंगी इश्वर से मेरी,
की मेरे गुजरने के बाद भी खुश रह सके आप…!
-Amit T. Shah (M.A.S.)
14th September 2010
Wednesday, September 8, 2010
My Recent Poem on P4Poetry.com
तो हमारी आँखों से आंसुओं की नदी बहती है…!
मगर हम जब अपनों को छोड़ कर जाते है,
हमारी आँखे ही हमेशा के लिए बंद हो जाती है…!
यह दुनिया भी अजीब है,
और यह दुनिया बनाने वाला भी अजीब है, मेरे दोस्त…!
मरता हुआ इंसान बहोत बैचेन रहता है,
पर मरने के बाद वोह बड़े चैन की नींद सोता है…!
ज़िन्दगी बहोत छोटी है, मेरे दोस्त…,
मगर कभी-कभी एक दिन भी बहोत लम्बा लगता है…!
कभी पलके वक़्त के गुज़रने का इंतज़ार करते हुए झुक जाती है,
और कभी पलके झुकते ही पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाती है…!
हमारी यारी दुनिया मे सबसे प्यारी है…! रोना क्या है.., भूल जा मेरे दोस्त…!
अब तो जी भर कर हंसने की बारी है…!
लोग तो प्यार में साथ-साथ जीने-मरने की बातें करते है…,
मगर हम तो अपनी दोस्ती को ही सबसे ज्यादा प्यार करते है…!
- अमित शाह (M.A.S.)
8th September 2010
Saturday, September 4, 2010
HARD DAYS OUT...but...STILL FIND A TIME...
Its been very hard days out for me since last week. There is a heavy work load I am suffering from since then. It seems to be very tiring days for me in whole September. The field I am in require all your efforts in that month. It called a September Ending in our profession.
September ending is what we call a last month to complete all the Reports and Income Tax filing for all the Ltd. & Pvt. Ltd. Companies for the financial year 2009-10. There is a heavy work load with all the people engaged in this profession. But even though I am so happy rather than Lucky, that I find some times to update my blogs.
Further, I am glad to share one good news with all my friends that I had got completed my Internship/articleship training on 25th June 2010 for which I have been in receipt of the certificate from the Institute last week. I am very thankful to my principal Mr. Milin J. jani and all the staff members out there. It has been an excellent experience to work with him and all my staff members (Past & Present). I am specially thankful to my Sie, Mr. Milin J. Jani for giving me a huge support and imparting me a wonderful experience of practical training. I hope that whatever I have learned from him will definitely help me in future for my career.
I am so happy that during my articleship training I have learned lots of thing which will help me in practical life. Along with that I was also able to concentrate on my studies and the ultimate result is that I had completed my B.Com.,Inter CA as well as Inter CS. Now only final examinations are pending for me which I am suppose to give in May 2011. And after that I will enter the real corporate world.
In future I am planning to join a big corporate group in Delhi or Mumbai wherever I will deem fit for me. But it will be only for maximum of 2-3 years and after that I shall be looking forward to start my own practice. I would like to make my career in Finance & Taxation.
I will always be ready to help all my friends in whatever ways I can. You all are invited to consult me at any time for your any queries regarding Finance, Taxation and Audit. I am looking forward to help you all and not only the person I know but those who read this blog can also contact me any time.
You all are MOST WELCOME....
Thank you...
With LOL (Lots Of Love),
Amt T. Shah (M.A.S.)
Wednesday, August 25, 2010
CS INTER PASSED...
I dedicate my gr8 success to my Grand Parents, parents, Brother, & all my family & Relatives and also to all those my dearest friends who have given me a great support to opt for this opportunity.
Here is my entire results subject wise I am putting...
CS Exam : JUNE 2010
Exam : Executive Programme
Name : AMIT TEJALKUMAR SHAH
Roll Number : 59215
Module- I - Result : PASS
Subject Marks
General and Commercial Laws 47
Company Accounts, Cost
& Management Accounting 48
Tax Laws 49
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Total 144
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Module - II - Result:PASS
Subject Marks
Company Law 62
Economic and Labour Laws 59
Securities Laws and Compliances 52
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Total 173
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Grand Total : 317
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Thank you very much from the deep of my heart.....!!!
:-) :-) :-)
With Lots of Love,
Amit Shah (M.A.S.)
Monday, August 16, 2010
The Change Of Life_Prefece
- PREFECE:-
Monday, August 2, 2010
Try to ACHIEVE What you Really DESERVE...
"Sometimes it may also happen that, Whatever you really achieve that you never deserve & Whatever you really deserve that you never achieve..."
-Amit T. Shah (M.A.S.)
Thursday, July 22, 2010
Novel - "THe Change Of Life"
Today I am very happy because I had completed with writing my first Novel titled "The Change of Life". I was planning to write this novel since 4 years but didn't got a proper time for that or you can say I was quite lazy to seat to write it.But now as I had completed with writing this novel, I would like to get it published as soon as possible. I believe & I'm sure that people did never have read such an exciting novel ever. It's completely a new story that I think no one have ever think or written yet.
This story is about how ones life gets changed over a night. Sometimes something worst or something best happen in our life that we had never expected to occur. This story is of one person named Aditya Sahay and all that happen with him that he had never expected. Now to know what that happened with him, you will have to wait till this novel get published.
I hope that I will find a publisher very soon and if I can, then I damn sure that it will be the blockbuster novel in specifically the Indian market because it has been written specifically keeping in mind the Indian culture, character, places, atmosphere etc. And I further dedicate this novel to all my well wisher but specifically to the person to whom I had not met since five years. Because I get admired by him to writhe such an interesting novel. His name is Raja Sharma. I had also considered name of one of the character in that story as Raja. I hope I will get him me back in contact if I will be succeed in publishing this story. It's my hearty thanks to him.
Its my pleasure to thankful to all my friends, relatives, all my well wishers & all those around me.
I love India & I proud to be an Indian.
Jay Hind...
Thanks & Love to all,
Amit T. Shah ( M.A.S.)
Friday, July 16, 2010
About the Novel...
Thursday, July 1, 2010
Planning To write a NOVEL soon...
Wednesday, January 27, 2010
दिल दिया है, जाँ भी देंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
खुदको मिटा देंगे, अपनों को भी भूला देंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
फ़र्ज़ को हमारे, दिल से निभाएँगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
क़र्ज़ को हमारी, जाँ से उतारेंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
दिल में उठे दर्दों को भूलेंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
चारों ओर आंग में रहेंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
सपने चुनेंगे और निभाएँगे...ऐ वतन तेरे लिये...;
दुश्मन को भी भाई कहेंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
भाई को भी भूला देंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
खुद खून के आंसू रोएँगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
सब को खुशी के समंदर के नहलाएँगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
जाँ को हमारी जाँबाज़ बनाएँगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
दिल को हमारे पत्थर बनाएँगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
होली नहीं, दीपावली नहीं...नहीं खेलेंगे ईद...
अपनों के साथ - साथ त्योहारों को भी भूला देंगे...
ऐ वतन तेरे लिये...;
दीन क्या...? रात क्या...?
ऐ वतन तेरे लिये...;
दीन मै लड़ेंगे, रात मै लड़ेंगे...
ऐ वतन तेरे लिए...;
नींद आई तो हमेशा के लिए सोएँगे,
ऐ वतन तेरे लिए...;
वक़्त आया तो साँसे भी रोकेंगे...
ऐ वतन तेरे लिए...;
आखरी दम तक लड़ते रहेंगे,
ऐ वतन तेरे लिए...;
आगे ही आगे बढ़ते रहेंगे...
ऐ वतन तेरे लिए...;
दिल दिया है, जाँ भी देंगे...
ऐ वतन तेरे लिए...;
-Amit Shah
26th January 2010
How to Live the LIFE
If you can follow this formula, you can definately get a way to live a Happy & Successive life and I am sure that you will never be feel disappointment for your LIFE forever at the stage when your life will gettig towards the old age.
Thanks for your kind support to me......
My Golden Sentences
We know that but we ignore it.."
-16th June, 2008
2. "Set your target everuday.
Try to achieve it on a next day,
Shortage in actual output is Nothing..
But... Only a Loss in Profit."
-18th June, 2008
3. "Don't loose temper in critical situation
Try to hande that situation...
Keeping your mind CooL."
-19th June, 2008
4. "Every human beings have internal Strengths in it,
But... Amongst, Somebody has external Weaknesses,
Caused them to be unable to discover it."
-20th June, 2008
5. "On every new day..
you must feel a new Energy,
to achieve a new Target."
-21st June, 2008
6. "Perfection should be the part of your
Day - to - Day life."
- 22nd June, 2008
7. "Keep running untill you get your Destiny,
And... Keep holding after getting your Destiny."
-1st July, 2008
This is about FRIENDS.
"Never try to turn your life, But always try to find turning points in your life, Friends are like turning points and so they will come in your life, So don't miss them but try your best to catch them & save them in the memory of your heart"
Have a good time with your FRIENDS!!!
"पडोसन"
सपने में बनानी चाही हमारी एक कहानी,(१)
दीवाना तो था मै उसका, मगर
धुंड रहा था मेरी कोई दीवानी,(२)
लेकिन... बहुत अफ़सोस हुआ, क्योंकी
रात बीत गई और साथ ही बीत गई हमारी जवानी,
लेकिन फिर भी न बन पाई हमारी कोई कहानी,(३)
लेकिन जल्द ही मेरी खोई ख़ुशी वापस आ गई,
क्योकी... सुबह जब आँखे खोली तो,
सामने ही मैंने 'पडोसन' को पाई" (४)
-Amit Shah (M.A.S.)