अर्ज़ किया है...
आज हम अपनी ज़िन्दगी की किताब खोलते है...
" दिल मै दर्द था हमारे..,जिन्हें हम हँस कर भुला देते थे...आज उस दर्द को हम बयाँ करते है...;
नफ़रत करते थे बरसों पहले हम जिन्हें...आज उनसे मोहब्बत करते है...;
शम्मा में परवाने जलते है उसी तरह...
आज हम इस कलियुग मै जलते है...,
फर्क बस इतना है कि...
परवाने शम्मा में जल कर..
उजाला फैलाते है, और...
इस कलियुग में लोग हमें उजाले में जलाते है...;
मगर आज...जल कर भी हम जिंदा है...
तो बस इसीलिए...,
हर बार आप जैसे दोस्त ही हमें..सहारा देते है...; "
-Amit Shah (M.A.S)
24th February, 2009.
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