ABOUT CA. AMT SHAH

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Vyara, Gujarat, India
Hi Everyone...! Thanks to visit here. I am CA by profession and doing my Practice at Vyara, South GUjarat since 2013. I was born in Mehsana. I did my Schooling from Vyara and then moved to Ahmedabad for my further studies. There i completed my B.Com., CA and CS. Currently I am doing full time practice as a Chartered Accountants in the Firm Name "AMIT T SHAH & CO.". Thanks and Welcome Back...!

Saturday, April 9, 2011

उनको हमसे मोहब्बत होती क्यों नहीं…?

उनको हमसे मोहब्बत होती क्यों नहीं…?
उसने लाख इनकार किया,
फिरभी यह आँख रोती क्यों नहीं…?

वो रोज़ सामने से गुज़रती है,
और नज़रों से नज़रे भी मिलती है…
उनसे बात होती क्यों नहीं…?

जब भी हिम्मत करते है
उनसे बात करने की,
गले से आवाज़ निकलती क्यों नहीं…?

सपनों में वो रोज़ रात को आती है,
यह रात जल्दी होती क्यों नहीं…?

जब रात होती है
और नींद भी आती है;
यह आँखें सोती क्यों नहीं…?

मर मिटने की ख्वाहिश है
उनकी मोहब्बत की आस में…
यह साँसे रूकती क्यों नहीं…?

उनको भी शायद हमसे प्यार है,
उनके इनकार में भी शायद इज़हार है,
सुना है हमने कि…
“मोहब्बत में कभी हार होती नहीं…!”

शायद इसीलिए…
यह आँखे रोती नहीं…!
शायद इसीलिए…
यह साँसे रूकती नहीं…!

-अमित टी. शाह (M.A.S.)
3rd March 2011

न जाने क्यों…

न जाने क्यों आज हमारे दिल में
एक अजब सी चहल पहल है…?

न कोई मुश्किलात, न कोई डर…
और न कोई शिकायत…
मुझे तो लगता है कि शायद,
हमें किसी से प्यार है…!

जी तो करता है कि आज
दिल खोल कर रख दूं उनके सामने…
लेकिन कहीं उनका दिल न टूट जाए
इसका डर है…!

इज़हार करने से तो कोई हर्ज़ नहीं है
अपने प्यार का हमें…
लेकिन कहीं वो हमारे प्यार को न समझ पाए
इसका डर है…!

भरोसा तो है हमें पूरा
उनकी दोस्ती पर…
लेकिन कहीं दोस्ती कि यह डोर भी न टूट जाए
इसका डर है…!

कहते है लोग कि,
मोहब्बत का झख्म काफी गहरा होता है…
और उस झख्म से जो दर्द होता है
वो दुनियाँ के किसी भी दर्द से ज्यादा होता है…!

हमें तो यह मालूम भी न पड़ा
कि यह झख्म हमें कब लग गया…
दोस्ती का यह पवित्र रिश्ता
मोहब्बत में कैसे बदल गया…!

शायद इसी बात को ले कर,
आज हमारे दिल में
एक अजब सी चहल पहल है…!

- Amit T. Shah
9th April 2011

Thursday, April 7, 2011

उनको हमसे मोहब्बत होती क्यों नहीं…?

उनको हमसे मोहब्बत होती क्यों नहीं…?

उसने लाख इनकार किया,
फिरभी यह आँख रोती क्यों नहीं…?

वो रोज़ सामने से गुझरती है,
और नज़रों से नज़रे भी मिलती है…
कमबख्त…उनसे बात होती क्यों नहीं…?

जब भी हिम्मत करते है
उनसे बात करने की,
कमबख्त…गले से आवाज़ निकलती क्यों नहीं…?

सपनों में वो रोज़ रात को आती है,
कमबख्त…यह रात जल्दी होती क्यों नहीं…?

जब रात होती है
और नींद भी आती है;
कमबख्त…यह आँखें सोती क्यों नहीं…?

मर मिटने की खाहिश है
उनकी मोहब्बत की आस में…
कमबख्त…यह साँसे रूकती क्यों नहीं…?

उनको भी शायद हमसे प्यार है,
उनके इनकार में भी शायद इज़हार है,
सुना है हमने कि…
“मोहब्बत में कभी हार नहीं होती…!”

शायद इसीलिए…
यह आँखे रोती नहीं…!
शायद इसीलिए…
यह साँसे रूकती नहीं…!

-अमित टी. शाह (M.A.S.)
3rd March 2011

प्रायश्चित…

आज इस दुनिया में कोई भी इंसान, जिसने अपने पूरे जीवन काल में बस धोखेबाजी, गद्दारी और किसी का बुरा ही किया है, वह इंसान जब अपने जीवन के अंतिम पढाव पर पहूंचेगा तो शायद अफ़सोस के साथ यही प्रायश्चित करेगा…! मैंने इसे अपनी कविता के रूप में बयां करने की कोशिश की है..! शायद पसंद आये..!

इंसान बन कर आया था मै,
अफ़सोस हैवान बन कर जिया और जा रहा हूं…!

दुश्मनी की डगर पे चलते चलते
मै खो गया था अन्जान नगर में…!

इंसानों के साथ झगड़ते – झगड़ते
मै सो गया था इंसानियत की कबर में…!

खुदा की खोज करने की वजह
मै मिल गया था खुदगर्ज़ों की ज्यात में…!

पेसो की पीछे भागते भागते
मै डूब गया था तवंगर के तालाब में…!

कल तक किसी की खुशियों से जलता था मै
आज जल रहा हुं अफ़सोस की आग में…!

इंसान के रूप में मै आया था इस दुनियाँ में,
और आज बदल गया हूं हैवान के रूप में…!

लोगों की ज़िन्दगी में सैलाब फैला कर
आज बह रहा हूं, अपने ही आंसुओं की बाढ़ में…!

-अमित टी. शाह (M.A.S.)
13th February 2011

इंसानों की इस बस्ती में से, “इंसान” कहाँ खो गया…?

इंसानों की इस बस्ती में से,
“इंसान” कहाँ खो गया…?

क्या वो “भ्रष्टाचार” की आग में
जल कर “धुवां” बन गया…?

या फिर “महंगाई” की चिता में
जल कर वो “राख” बन गया…?

ऐ – खुदा…
“परवाने” की तरह “शमा” में जल कर
वो “उजाला” कब बनेगा…?

इंसानों की इस बस्ती में से,
“इंसान” फ़ना हो गया…!

ऐ- दोस्त…(श्रद्धांजलि)

I had written this poem in the memory of my lovely friend whom I lost in an unforeseen accident exactly five years ago…! May god gives a deep peace to his spirit…!!!

ऐ- दोस्त…हमें इस मतलबी दुनियाँ में अकेला भटकते छोड़ कर,
तू क्यों इतने चैन से सो गया…?

कुछ दर्द, जिनको मिले हुए एक अरसा गुज़र गया,
न जाने क्यों आज मैंने फिर उसे महसूस किया…?

कुछ यादें, जो हमारी कहीपे खो गए थी,
न जाने क्यों आज अचानक उसे याद किया…?

एक दिन, जब तुजसे रूठ गए थे हम,
न जाने क्यों आज वह दिन हमारे मानसपट पर उभर आया…?

वह रुदन, जिनको हम दिल की गहराइयों में कहीं दबा चुके थे,
न जाने क्यों आज वह रुदन फिरसे उभर आया…?

वह पानी, जिनको हम कबके गिरा चुके थे इन् आखों से,
न जाने क्यों आज वह पानी फिरसे इन् आँखों में छलक आया…?

वह चहेरा, जिनको हम तकरीबन भूल ही चूके थे,
न जाने क्यों आज वह चहेरा अचानक ही हमारे सपनों में आया…?

वह सहारा, जिनके ज़रिये हम रोज़ चलते थे ज़िन्दगी की राहो में,
न जाने क्यों आज हमें वह सहारा याद आया…?

वह इंसान, जिनके साथ अपना सारा सुख – दुःख बांटा हमने,
न जाने आज वह इंसान कहाँ खो गया…?

ऐ- दोस्त…हमें इस मतलबी दुनियाँ में अकेला भटकते छोड़ कर
तू क्यों इतने चैन से सो गया…?
तू क्यों इतने चैन से सो गया…?
तू क्यों इतने चैन से सो गया…?


- अमित टी. शाह (M.A.S.)
29th November 2010

एक हसीन शाम…

कल शाम को मै अपने मोटरसायकल पर किसी बस स्टॉप से गुज़र रहा था तो उस बस स्टॉप पर एक बहुत ही ख़ूबसूरत लड़की को देखा.! कह दो जैसे वो चाँद का टुकड़ा ही हो…! देख कर उसे मेरे मन में कुछ खयालात आये और सोचने लगा – “कैसा हो अगर मै उनके पास जा कर प्यार की दो चार मीठी बातें करू, मेरे कवि मन का एक परचा करा कर उसे “इम्प्रेस” करने की कोशिश करू??”
शायद कुछ ऐसा मनोरंजन हो..!

आप हमें जानते नहीं,
पर हम आप को जानते है…!
आप हमें पहचानते नहीं,
पर हम आप को पहचानते है…!

आप रोज़ इस बस स्टॉप पर आती है,
और यहाँ से १० नंबर की बस से जाती है…!
हम भी आप की बस के पीछे-पीछे,
अपनी मोटर-सायकिल ले कर आते है…!

हम आज “इकरार” करते है,
अपने प्यार का “इज़हार” करते है…!

सुन कर इतना,
बिच में ही हमें रोक कर के वो बोली,
“चल बे-झूठे…मै तो आज पहली बार
इस बस से जा रही हूँ…!
न जाने ये “आवारा” – “पागल”,
कहाँ कहाँ से आ जाते है…!?”


- अमित टी. शाह (M.A.S.)
19th November 2010

How to Live the LIFE

Now a days its the problem of everyone to get setteled with the changing environment of th globel world. Everyone wanted to live their own life with comfort. But in the way to get comfort they are lossing their social life and relation. So my thinking is that "Everyone should have a right to live their life but he or she must have to maintain their relation with the Family, Friends, Relatives and Society as a whole.

If you can follow this formula, you can definately get a way to live a Happy & Successive life and I am sure that you will never be feel disappointment for your LIFE forever at the stage when your life will gettig towards the old age.

Thanks for your kind support to me......


My Golden Sentences

1. "In every soul there is a God.
We know that but we ignore it.."
-16th June, 2008

2. "Set your target everuday.
Try to achieve it on a next day,
Shortage in actual output is Nothing..
But... Only a Loss in Profit."
-18th June, 2008

3. "Don't loose temper in critical situation
Try to hande that situation...
Keeping your mind CooL."
-19th June, 2008

4. "Every human beings have internal Strengths in it,
But... Amongst, Somebody has external Weaknesses,
Caused them to be unable to discover it."
-20th June, 2008

5. "On every new day..
you must feel a new Energy,
to achieve a new Target."
-21st June, 2008

6. "Perfection should be the part of your
Day - to - Day life."
- 22nd June, 2008

7. "Keep running untill you get your Destiny,
And... Keep holding after getting your Destiny."
-1st July, 2008

This is about FRIENDS.

"Never try to turn your life, But always try to find turning points in your life, Friends are like turning points and so they will come in your life, So don't miss them but try your best to catch them & save them in the memory of your heart"

Have a good time with your FRIENDS!!!

"पडोसन"

"हम ने देखा एक सपना, और
सपने में बनानी चाही हमारी एक कहानी,(१)


दीवाना तो था मै उसका, मगर
धुंड रहा था मेरी कोई दीवानी,(२)


लेकिन... बहुत अफ़सोस हुआ, क्योंकी
रात बीत गई और साथ ही बीत गई हमारी जवानी,
लेकिन फिर भी न बन पाई हमारी कोई कहानी,(३)


लेकिन जल्द ही मेरी खोई ख़ुशी वापस आ गई,
क्योकी... सुबह जब आँखे खोली तो,
सामने ही मैंने 'पडोसन'
को पाई" (४)



-Amit Shah (M.A.S.)