शाम होते ही यारों की
महफ़िल का दौर शुरू होता है...!
कोई अपनी मोहब्बत को
उस महफ़िल में ले कर आता है...!
तो कोई उस महफ़िल में आ कर
अपनी मोहब्बत को पाता है...!
शाम, शायरी और शबाब की
ऐसी तो गज़ब मिलावट होती है...!
चारो और यारों की बस
एक ही खिलखिलाहट होती है...!
कुछ मतलब के होते है,
और कुछ बेमतलब के होते है...!
पर महफ़िल में साले
फ़िज़ूल के खर्चे बहुत होते है...!
कुछ लोगों के होते है,
तो कुछ हमारे भी होते है...!
महफ़िल में दोस्ती और मोहब्बत के
चर्चे बहुत होते है...!
-अमित टी. शाह (M.A.S.)
25th November 2011